लगभग अस्सी वर्ष की आयु के एक बुजुर्ग व्यक्ति के डॉक्टर ने उसे कुछ दिनों के लिए नर्सिंग होम में भर्ती होने की सलाह दी ताकि उसकी शारीरिक कमजोरी का सही से इलाज हो सके और कुछ आवश्यक जाँचें की जा सकें। उस व्यक्ति की दोनों आँखों की रोशनी जा चुकी थी। अभी कुछ दिन पहले उसकी सत्तर वर्षीय पत्नी का स्वर्गवास हुआ था और वह नि:संतान था। इस पर भी वह रोज सुबह उठ कर शेव करता, अच्छे से तैयार होता मानो उसे किसी ऑफिस में अपनी ड्यूटी पर जाना हो। उसकी यह दिनचर्या लोगों के लिए कौतुहल का विषय थी। व्यवहार से अत्यंत शालीन और विनम्र उस बुजुर्ग की आसपास के लोग बहुत इज़्ज़त करते थे। लोग अपनी परेशानियों के बारे में उससे न सिर्फ सलाह लेते थे बल्कि उसकी सलाह को मूल्यवान मानते थे।
खैर, एक दो दिन बाद वह व्यक्ति शहर के एक प्रसिद्ध नर्सिंग होम में भर्ती होने के लिए पहुँचा। लॉबी में काफी देर तक धर्यपूर्वक इंतजार करने के बाद उसका नम्बर आया। नर्स ने जब उसके पास आकर कहा कि अपका कमरा तैयार है, तो उसके चेहरे पर मुस्कान उभरी। नर्स ने उस अंधे बुजुर्ग व्यक्ति को व्हीलचेयर पर बिठाया और एलीवेटर के ज़रिये वह उसे कमरे के अन्दर लेकर गयी। नर्स ने उस कमरे की खिड़कियों पर टंगे हुए पर्दों तक का सारा विवरण उस व्यक्ति को बताया। बुजुर्ग व्यक्ति ने उत्साह के साथ कहा कि मुझे पसंद आया यह कमरा। नर्स ने कहा – “लेकिन सर आपने कमरा देखा कहाँ है, मैंने सिर्फ इसके बारे में आपको बताया है”। बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा – “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। खुशी वह चीज है जिसके बारे में आप पहले से ही निर्णय ले लेते हैं। मुझे यह कमरा पसंद है या नहीं, यह इस बात पर निर्भर नहीं करता कि इसमें फर्नीचर की व्यवस्था किस तरह से की गयी है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि मैंने अपने दिमाग को किस तरह व्यवस्थित किया हुआ है। मैंने इसे पसंद करने का निर्णय पहले ही ले लिया था। यह निर्णय मैं रोज सुबह उठने पर ले लेता हूँ। मेरे पास विकल्प है; मैं चाहूँ तो पूरा दिन बिस्तर में पड़ा अपनी ज़िन्दगी के दुखों को गिनने में बिता सकता हूँ, अपने शरीर के उन भागों के बारे में सोच कर, जो काम नहीं करते हैं, व्यथित हो सकता हूँ, या बिस्तर छोड़ कर शरीर के काम कर रहे भागों के बारे में सोच कर ईश्वर का आभार व्यक्त कर सकता हूँ। मेरे लिए हर दिन एक नया उपहार है, और जब तक मेरी आँखें खुलती रहेंगी, भले ही मैं उनसे देख नहीं पाता हूँ, मैं अपना पूरा ध्यान नये दिन पर और उन खुशनुमा यादों पर केन्द्रित रखूँगा जिन्हें मैंने अपनी ज़िन्दगी में जिया है”।
“बुढ़ापा एक बैंक अकाउंट की तरह है। आप इस अकाउंट से उतना ही और वही निकाल पायेंगे जो आपने जमा किया है। चिंता ट्रैडमिल पर चलने की तरह होती है, यह आपको व्यस्त रखती है लेकिन किसी मंज़िल पर नहीं पहुँचाती। खुश रहने के पाँच सरल नियम हैं – अपने दिल को नफरत से मुक्त करें, अपने दिमाग को चिंता से मुक्त करें, सादगी से जियें, लेने से ज्यादा दें, अपेक्षायें कम रखें”।
नर्स उस अंधे बुजुर्ग व्यक्ति की ओर हैरत से देखती रही। उसे लगा कि ज़िन्दगी तो आज समझ में आयी है। उस अंधे व्यक्ति की रोशन सलाह ने जीने का अर्थ समझा दिया। जो हमारे पास नहीं है, उसके लिए मलाल नहीं, जो है उसके प्रति कृतज्ञता का भाव ही ज़िन्दगी जीने का मार्ग प्रशस्त करता है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम कौन सा विकल्प चुनते हैं। जो नहीं है वह चिंता करने से आ नहीं जायेगा, बल्कि जो है वो भी जाता रहेगा। नफरतें ज़िन्दगी की जड़ों को सुखा देती हैं, अपेक्षायें पीड़ा देती हैं। सादगी के साथ दूसरों के लिए कुछ कर पाने के भाव से जियें, ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है।
- राजेन्द्र चौधरी
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