उत्तर भारत के श्रेष्ठतम कहे जाने वाले अस्पताल में मस्तिष्क सम्बन्धी एक घातक बीमारी के इलाज के लिए भर्ती मेरे छोटे भाई की पत्नी के उपचार के सम्बन्ध में पिछले दिनों एक विकट स्थिति उत्पन्न हो गयी। उपचार के दौरान उसके मस्तिष्क पर सूजन आ गयी जो उसकी ज़िन्दगी के लिए खतरनाक थी। स्कैन करने वाले टैक्निशियन से लेकर अस्पताल के न्यूरोलॉजी विभाग के लगभग सभी डॉक्टरों की राय थी कि सर्जरी की जानी चाहिये। सर्जरी की तैयारियां भी हो गयीं, लेकिन न्यूरोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर झा ने स्वयं आकर मरीज को देखा और उन्होंने सर्जरी स्थगित करने का निर्णय लिया। संयोगवश मेरी पुत्रवधु उस समय अस्पताल में मौजूद थी। उसने इसके बारे में डॉक्टर से विस्तार से चर्चा की और इस बारे में जानकारी चाही कि यह सूजन मरीज के लिए कितनी घातक हो सकती है। डॉक्टर के द्वारा यह बताये जाने पर कि बहुत घातक हो सकती है, उसे सर्जरी स्थगित कर देने का निर्णय अजीब लगा। उसने अस्पताल से सारी रिपोर्टें और स्कैन लेकर मेरे भाई और उसके पुत्र के साथ ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के न्यूरोलॉजी विभाग के भूतपूर्व अध्यक्ष डॉक्टर मेहता का परामर्श लेना चाहा। डॉक्टर मेहता ने रिपोर्टों और स्कैंस को देखकर कहा कि सूजन काफी ज्यादा है और उनके विचार से सर्जरी तुरंत की जानी चाहिये। हालांकि मरीज के क्लिनिकल लक्षणों का इन रिपोर्टों और स्कैंस से पूरा पता नहीं चलता, लेकिन सर्जरी टालना अत्यंत जोखिमपूर्ण होगा। मेरी पुत्रवधु ने इलाज कर रहे डॉक्टर को डॉ. मेहता की राय बतायी, लेकिन डॉक्टर झा ने सर्जरी स्थगित रखने का अपना निर्णय नहीं बदला।
आप समझ सकते हैं कि हमारे लिए वो कितना कशमकश भरा दुविधापूर्ण समय रहा होगा। खैर, हमने अंतत: डॉक्टर झा के निर्णय पर भरोसा करना ही उचित समझा। अगले पाँच दिनों तक मरीज की स्थिति वैसी ही बनी रही और छठे दिन से सूजन घटने लगी, सर्जरी टल गयी। अब डॉक्टरों के मुताबिक मरीज की जान को खतरा नहीं है, पर स्थिति में सुधार की प्रक्रिया धीरे-धीरे शुरू होगी। क्या कहेंगे इस स्थिति में डॉ. मेहता, डॉ. झा और हमारे निर्णय के बारे में आप? दोनों डॉक्टर भारत के कुशलतम डॉक्टरों में गिने जाते हैं। मेरे विचार से डॉक्टर मेहता का सर्जरी करने का निर्णय समझदारी पूर्ण निर्णय था; डॉक्टर झा का सर्जरी रोके रखने या स्थगित करने का निर्णय सूझबूझ भरा यानि बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय था; डॉक्टर झा के निर्णय पर भरोसा करना हमारा समझदारी पूर्ण निर्णय था।
समझदारी या ज्ञान क्या है? शिक्षा या अनुभव के ज़रिये किसी विषय के सम्बन्ध में जानकारी, समझ, और निपुणता हासिल करना। इसका सम्बन्ध तथ्यों और डैटा पर आधारित उस ज्ञान से है जो किसी भी उस व्यक्ति को प्राप्त हो सकता है जिसके पास वांछित संसाधन हों और ज्ञान प्राप्त करने की चाह हो। इसीलिए कहा जाता है कि अमुक व्यक्ति को अमुक विषय का विस्तृत ज्ञान या जानकारी है। यह नहीं कहा जाता कि अमुक व्यक्ति के पास अमुक विषय की विस्तृत बुद्धिमत्ता है। दूसरी ओर, बुद्धिमत्ता अनुभव और ज्ञान के आधार पर उचित समय पर समझदारी पूर्ण निर्णय लेने और उत्तम परामर्श देने की योग्यता है। किसी व्यक्ति के पास किसी विषय का भरपूर ज्ञान और समझ हो सकती है, लेकिन ज़रूरी नहीं कि उसके पास उस ज्ञान या जानकारी को सही समय पर, सही रूप में उपयोग करने की बुद्धिमत्ता हो। आप उच्चतम शिक्षा के द्वारा ज्ञान अर्जित कर सकते हैं, लेकिन बुद्धिमत्ता के लिए अनुभव अनिवार्य है।
ज्ञान वो है जिसकी आपको जानकारी है, बुद्धिमत्ता निर्णय लेने की योग्यता व क्षमता है। क्या जानना है, कितना जानना है, और उससे क्या करना है, मेरे विचार से यह योग्यता बुद्धिमत्ता कहलाती है। ज्ञान अर्जित किया जाता है, बुद्धिमता विकसित की जाती है। बुद्धिमत्ता न हो तो क्या हम ज्ञान का ठीक से उपयोग कर पायेंगे? मोटे तौर पर कहें तो यह जानना कि टमाटर एक पौधे विशेष का फल है, ज्ञान है; लेकिन बुद्धिमत्ता यह जान लेना है कि टमाटर ‘फ्रूट सलाद’ में नहीं ड़ाला जाता। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम ज्ञानवान बनना चाहते हैं या बुद्धिमान।
- राजेन्द्र चौधरी
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