कल रात को टीवी के एक प्रमुख समाचार चैनल पर एक परिचर्चा आ रही थी। परिर्चर्चा में पिछले दिनों प्रकाश में आये घोटालों के विषय में कुछ सम्पादकगण और बुद्धिजीवी बातचीत कर रहे थे और ऐसा क्यों हुआ, कौन जिम्मेदार है, क्या क्या नज़रअन्दाज किया गया, यकायक बाढ़ सी आ गयी है घपलों-घोटालों की, आम आदमी की कोई सुनने वाला नहीं है, नेताओं और अफसरों को लूटने से फुरसत नहीं है, आदि आदि विषयों पर बहस चल रही थी। पर वो लोग एक बात पर अमूमन एकमत थे कि प्रधानमंत्री व्यक्तिगत तौर पर एक ईमानदार व्यक्ति हैं।
मुझे एक कहानी याद आ गयी जो मैंने बहुत पहले कहीं पर पढ़ी या सुनी थी: “एक राजा था जो बहुत ईमानदार और सज्जन था। सब लोग उसकी ईमानदारी और सज्जनता की तारीफ करते थे। लेकिन उसके राज में अपराध बढ़ने लगे, रोज नये नये अपराध सामने आने लगे। प्रजा त्रस्त होने लगी, पर अपराध थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। राजा ने अपने मंत्रियों को बुलाया और उन्हें अपनी चिंता से अवगत कराया तथा अपराधों पर शीघ्र काबू पाने के आदेश दिये। लेकिन उसके बाद भी अपराध कम नहीं हुए। राजा ने स्वयं पुलिस के उच्चाधिकारियों की बैठक आहूत की और उन्हें इस बाबत सख्त निर्देश दिये, पर अपराध जस के तस। राजा ने फिर समाज के बुद्धिजीवियों को बुलाया और उनसे विचार-विमर्श किया कि अपराधों पर कैसे काबू पाया जाये। सबने अपनी-अपनी राय दी और जो बातें प्रमुख रूप से उभर कर सामने आयीं उनके क्रियान्वयन के लिए एक उच्चस्तरीय समिति गठित कर दी गयी। समिति की क्रियान्वयन के लिए फोलो-अप बैठकें होने लगीं, लेकिन अपराध नहीं रुके। अंत में दुखी होकर राजा ने राज्य में घोषणा करा दी कि जो भी व्यक्ति राज्य में अपराधों पर लगाम लगा देगा उसे उचित पुरस्कार दिया जायेगा और राजा के दरबार में विशेष मंत्री का दर्जा प्राप्त होगा।
सर्दियों के दिन थे। एक गाँव में कुछ लोग आग जला कर ताप रहे थे और राजा की घोषणा के बारे में चर्चा कर रहे थे, कि तभी एक फकीर भी उनके पास आग तापने के उद्देश्य से आ खड़ा हुआ। फकीर ने उन लोगों की बातें सुनी और कहा कि मैं एक हफ्ते के अन्दर अपराध खत्म कर सकता हूँ। लोग उसका मुँह ताकने लगे और तरीका पूछने लगे। उसने कहा कि तरीका तो मैं राजा को ही बताऊँगा।
यह खबर राजा तक पहुँचनी ही थी, सो पहुँच गयी। राजा ने उस फकीर को बुलवाया और उससे पूछा कि क्या उसने ऐसा कहा था। फकीर बोला कि जी हाँ कहा था और सच कहा था, मैं एक हफ्ते के अन्दर अपराध खत्म कर सकता हूँ और इसके एवज में मुझे आपका कोई भी पुरस्कार या मंत्री पद नहीं चाहिये। दरबार में खुसर-पुसर शुरू हो गयी, मंत्रीगण उसकी बातों को झूठा दंभ करार देने लगे। राजा ने फकीर से कहा कि ठीक है मैं तुम्हें मौका देता हूँ लेकिन अगर अपराध कम नहीं हुए तो तुम्हें दंड दिया जायेगा। फकीर बोला कि मैं दंड भुगतने के लिए तैयार हूँ लेकिन आपको एक वचन देना होगा। राजा के पूछने पर उसने कहा कि आपको वचन देना होगा कि मैं इस बाबत जो भी आपसे करने के लिए कहूँ, अपको वो करना होगा। राजा ने थोड़ा सोचा और फिर हामी भर दी।
फकीर बोला कि अपने राजमहल के गेट के दोनों तरफ झिर्री कटे ढक्कन वाले कुछ बड़े-बड़े पात्र रखवा दें और राज्य में घोषणा करा दें कि जिस किसी के साथ भी कोई अपराध हुआ हो उसकी लिखित सूचना उन पात्रों के अन्दर पाँच दिनों के अन्दर ड़ाल दें, पाँच दिन के बाद किसी को भी उसके साथ हुए अपराध की सूचना देने का अधिकार नहीं होगा। राजा ने ऐसा ही किया। फिर फकीर राजा को प्रणाम करके छठे दिन आने का आश्वासन देकर चला गया। छठे दिन फकीर दरबार में पहुँचा और उसने राजा से उन शिकायत-पात्रों को मंगवाने का अनुरोध किया। शिकायत पात्र खोले गये, सब लोग हजारों की संख्या में प्राप्त हुए शिकायत-पत्र देख कर हैरान रह गये। फकीर मौन बना रहा। उसने राजा से कहा कि इन शिकायत-पत्रों को आपस में मिलवा दें और फिर कोई भी एक शिकायत-पत्र उस ढ़ेर में से उठा लें। राजा ने ऐसा ही किया और उठाया गया शिकायत-पत्र फकीर की ओर बढ़ा दिया। फकीर ने उस पत्र को एक मंत्री को दिया और कहा कि इसे जोर से पढ़ कर सुनायें। मंत्री के हाथ काँपने लगे, लेकिन राजा के आदेश पर उसने उस पत्र को जोर से पढ़ना शुरू किया। वह पत्र राज्य के किसी गरीब किसान की बेटी का था जिसमें कहा गया था कि राजा के बेटे ने उसके साथ जोर जबरदस्ती की और उसकी इज़्ज़त लूटी। दरबार में सन्नाटा छा गया। फकीर बोला कि राजा साहब अपने बेटे को आप इसी वक्त सरेआम फाँसी पर लटका दीजिये। राजा ने फकीर से उदास स्वर में कहा कि मेरा तो एक ही बेटा है, ऐसा न करें। फकीर ने कहा कि आपने वचन दिया था, अब अपने वचन से न फिरें। मन मार कर राजा को फकीर की बात माननी पड़ी और राजा के बेटे को सरेआम फाँसी दे दी गयी। फकीर बोला अब बाकी शिकायत-पत्रों को जलवा दिया जाये, इनकी अब कोई ज़रूरत नहीं है”। यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि उस दिन के बाद से उस राज्य में एक भी अपराध की घटना सुनने में नहीं आयी।
ये कहानियाँ प्रतीकात्मक होती हैं लेकिन इनमें गूढ़ अर्थ छिपे होते हैं। ये कहानियां व्यावहारिक ज़िन्दगी पर गढ़ी होती हैं। जब किताबी ज्ञान काम न आये, तो ऐसी कहानियों में समस्याओं के हल खोजने में कोई हेठी नहीं होती बल्कि समझदारी होती है। सहजबुद्धि बेशकीमती होती है, वह बड़ों बड़ों को असहज कर देती है। उसी तरह से सहज ज्ञान हर किताबी ज्ञान से बड़ा होता है।
- राजेन्द्र चौधरी
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