मंगलवार, अगस्त 16, 2011

नारी-सशक्तिकरण

पिछले कुछ वर्षों से ‘नारी-सशक्तिकरण’ (Women Empowerment) शब्द का प्रयोग अपेक्षतया कुछ अधिक ही किया जा रहा है, खास तौर से नेताओं और तथाकथित बुद्धिजीवियों के द्वारा। हर बार संसद सत्र शुरू होने से पहले सुनाई देने लगता है कि अमुक पार्टी नारी सशक्तिकरण के लिए आरक्षण बिल लाना चाहती है और अमुक पार्टी या पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं, इसलिए यह बिल फिर लम्बित रह जाता है। मुझे राजनीति का ककहरा भी नहीं आता और न ही इसे सीखने में मेरी कोई रुचि है, परंतु मुझे यह ‘नारी-सशक्तिकरण’ शब्द विरोधाभासी लगता है। जो स्वयं सशक्त है, उसका सशक्तिकरण करेगा उससे अपेक्षतया कम सशक्त व्यक्ति? आपको मेरी बात अजीब लगती है? आप पुरुष को नारी से अधिक सशक्त मानते हैं? आप सोचते हैं कि सशक्त होने के लिए नारी, पुरुष की मोहताज है?

हम लोग राम को भगवान मानते हैं। लेकिन क्षमा करना, ध्यान से पढ़ोगे तो न जाने कितने उदाहरण मिलेंगे रामचरितमानस में जहाँ पर राम अशक्त, विवश दिखायी पड़े। दूसरी ओर एक भी उदाहरण नहीं मिलेगा जहाँ पर सीता अशक्त प्रतीत हुई हों। वो सशक्त थीं तभी तो रावण के क्रूर हाथों से भी अनछुई लौट आयीं। ऐसी विपरीत स्थिति में भी उन्होंने पति के विश्वास को मरने नहीं दिया, उस पर आँच तक नहीं आने दी। राम ने क्या सिला दिया अग्नि को साक्षी मान कर अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार की गयी सीता को – अग्नि-परीक्षा? किसका आचरण बड़ा हुआ दोनों में? कौन अधिक सशक्त हुआ?

द्रौपदी के साथ क्या हुआ था? जुए में हार दी थी वो, खुद उसके पति ने, वो भी जो धर्मराज था। पाँच-पाँच अद्वितीय योद्धा कहलाने वाले पतियों के मौजूद होते हुए भी, उनमें से कोई आगे नहीं बढ़ा दुश्शासन द्वारा किये जा रहे चीरहरण से उसे बचाने के लिए। कृष्णा के कृष्ण न आते अगर उस क्षण उसकी रक्षा करने, तो क्या होता? दुस्साहसियों और अन्याय के मूक दृष्टाओं का अंत कराने के पीछे अग्निधर्मा द्रौपदी के अन्दर धधकने वाली अग्नि की ज्वाला नहीं थी तो क्या था?
सत्यवान को यमराज के हाथों से भी वापस ले आने की शक्ति किस में थी? वो सावित्री क्या नारी नहीं थी?

तुलसीदास को रामचरितमानस के रचयिता तुलसीदास के रूप में प्रतिष्ठित कराने के पीछे उनकी पत्नी रत्नावली का उलाहना ही तो था जो शक्ति और प्रेरणा बन गया तुलसीदास के लिए। रत्नावली नारी नहीं थी तो कौन थी? कालिदास को कालिदास भी तो एक नारी की उपेक्षा ने ही बनाया था।

अपनी नवविवाहिता पत्नी के प्यार में अपने राजधर्म से ड़गमगाते हुए और युद्ध पर जाने के लिए तैयार न होने वाले राजपूत पति को उसका कर्तव्य याद दिलाने के लिए उसी की तलवार से अपना सिर काट कर भेंट कर देने वाली उसकी राजपूत वीरांगना पत्नी नारी नहीं थी तो कौन थी?

इतिहास भरा पड़ा है ऐसी मिसालों से जो सिद्ध करती हैं कि नारी सदा से शक्तिशाली रही है। हमारे यहाँ शक्ति की आराध्य देवी दुर्गा नारी रूप में ही तो हैं। विद्या की देवी सरस्वती, धन की देवी लक्ष्मी नारी रूपा ही तो हैं।

फिर नारी का सशक्तिकरण पुरुष पर निर्भर कैसे हुआ? झूठा, खोखला दम्भ है पुरुष का यह। नारी सदा से सशक्त है, तभी तो उसे ही जननी होने का गौरव प्राप्त है। पुरुष का दायित्व है नारी का सम्मान करना क्योंकि वह उसकी अधिकारी है और इसी में पुरुष की भी भलाई है। नारी का सम्मान करके, उसे उसका उचित अधिकार देकर पुरुष उस पर कोई उपकार नहीं करता वरन अपने दायित्व का निर्वाह करता है। नारी का अपमान करके पुरुष अपनी माँ की कोख का अपमान करता है, अपनी बहन के रक्षा-सूत्र का निरादर करता है, अपनी पत्नी के सिंदूर का उपहास करता है। कम से कम मेरी नज़र में तो यह अक्षम्य है।
- राजेन्द्र चौधरी

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