सोमवार, अगस्त 15, 2011

हँसूं या रोऊँ?

यह लेख मैं 15 अगस्त की पूर्व संध्या पर लिख रहा हूँ। कल मेरा भारत अपनी स्वतंत्रता के 64 वर्ष पूरे कर लेगा। मेरा जन्म हालांकि 15 अगस्त 1947 के कुछ वर्ष बाद हुआ, लेकिन मैंने जितना पढ़ा और सुना है वह मुझे यह बोध कराने के लिए काफी है कि हमारे पूर्वजों ने कितने संघर्ष और अथक प्रयासों से अपना जीवन होम करके हमें स्वतंत्र भारत के नागरिक कहलाने का गौरव प्रदान किया है। उनके उन प्रयासों को भूलना तो दूर, हम उनसे कभी भी उऋण नहीं हो सकते। कल प्रधानमंत्री लाल किले के प्राचीर पर ध्वजारोहण करेंगे। मैं अपनी पूरी आयु बड़े गर्व के साथ पहले रेडियो पर उस कार्यक्रम का आँखों देखा हाल सुनता आया हूँ और पिछले काफी वर्षों से टीवी पर देखता आया हूँ। ऐसा पहली बार हो रहा है कि देश को जितनी प्रतीक्षा इस बार 15 अगस्त पर प्रधानमंत्री के अभिभाषण की है, उससे कहीं अधिक प्रतीक्षा 16 अगस्त को अण्णा के अनशन की है। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि इस स्थिति पर मैं हँसूं या रोऊँ?

64 वर्ष की स्वतंत्र भारत की यात्रा में प्रगति के कई मील के पत्थर हमने पार किये। हम विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र हैं। हमारे यहाँ हर धर्म को, हर जाति को बराबरी का दर्जा प्राप्त है। हमारे यहाँ 22 भाषायें और 100 से अधिक बोलियां बोली जाती हैं। अपने आप में इतनी विभिन्नताएं समेटे हुए हमारा देश आज अविकसित से विकासशील हो गया है और विकसित होने की दिशा में तेज़ी के साथ अग्रसर है। लेकिन इस विकास यात्रा में खुशी और पीड़ा दोनों ही अपनी चरम स्थिति का अहसास करा रही हैं। ब्रिटिश काल तक विश्व का सबसे अमीर देश कहलाने वाले मेरे इस देश में आज विश्व के 36% गरीब लोग बसते हैं। मेरा देश परस्पर विरोधी उदाहरणों की खान बन गया है।

मेरे देश के जिस शहर को किसी एक व्यक्ति के विश्व के सबसे मंहगे आवासों में गिने जाने वाले शायद 2 बिलियन डॉलर की लागत के, 27 मंजिले, व 6 मंजिल तक पार्किंग की सुविधा और 3 हैलिपैड की सुविधा से सुसज्जित ऐंटिला भवन का शहर होने का गौरव प्राप्त है, उसी शहर में विश्व की सबसे बड़ी मलिन बस्ती धारावी भी स्थित है। इस बस्ती में एक मिलियन से भी अधिक लोग रहते हैं और शायद प्रति 1440 निवासियों पर एक टॉयलेट की सुविधा उपलब्ध है। हमारे देश में सड़कों पर चलती हुई अगर विश्व की सबसे मंहगी कारें दिखायी देती हैं तो उन्हीं सड़कों पर आज भी बैलगाडियां और हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शा आसानी से दिखायी दे जायेंगी। मैं हँसूं या रोऊँ?

जिस देश में विश्व का सबसे पहला विश्वविद्यालय ‘तक्षशिला’ था और आज जिसके विश्वविद्यालय अंतर्राष्ट्रीय स्तर के होने का दम भरते हों और जो देश वैश्विक रूप से नये शैक्षणिक गंतव्य के रूप में उभर रहा हो, वही देश दुनिया में सबसे अधिक अशिक्षित आबादी वाले देशों में गिना जाता हो और उसी देश में बाल-मजदूरों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक हो। युनेस्को की एक रिपॉर्ट के अनुसार जिस देश में 72 मिलियन प्राइमरी स्कूल के बच्चे स्कूल में नहीं होते, और करीब 13 मिलियन बच्चे खतरनाक कामों में लगे होते हैं। और उस देश का नाम भारत हो, तो मैं हँसूं या रोऊँ?

कभी सोने की चिड़िया कहलाने वाले जिस भारत देश में आज भी लोग भुखमरी से मर जाते हों, जो देश बच्चों के कुपोषण के मामले में दुनिया में नम्बर दो पर आता हो, जिस देश में दामों की बढ़ोत्तरी के लिए खाद्य पदार्थों की जमाखोरी होती हो और खाद्य पदार्थों में मिलावट अपने चरम पर हो, जिस देश के हर शहर में बारातघरों में बड़ी-बड़ी दावतों के आयोजन होते हों और उन्हीं बारातघरों के बाहर भिखारी फेंके हुए खाद्य पदार्थों में से अपने जीवित रहने के लिए खाने हेतु खाद्य पदार्थ बीनते हुए दिखायी दें, तो मैं हँसूं या रोऊँ?

जिस देश में नारी को सीता, दुर्गा, काली, लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता हो और जिस देश में जन्म पूर्व लिंग-निर्धारण सम्बन्धी जाँच गैरकानूनी होते हुए भी भ्रूण हत्या और अवैध गर्भपात का कारोबार 1000 करोड़ की इंडस्ट्री बन गया हो। जहाँ पर आज भी ऐसे गाँव हों जिनमें महिलायें प्रतिदिन 2.5 से 5 किलोमीटर पैदल चल कर घर की दैनिक ज़रूरत के लिए पानी लेकर आती हों। जहाँ पर कृषि व उद्योग पानी के स्तर के तीव्रता से घट जाने का रोना रोते हों और इस दिशा में कोई कारगर कदम न उठाये जा रहे हों। जो देश अपनी राष्ट्रीय बिजली की खपत का 25% न्यूक्लियर पॉवर प्लांट्स से आपूर्ति करने की महत्वाकांक्षा रखता हो, और उसकी 35% आबादी को बिजली की सुलभता प्राप्त न हो। जिस देश की आम जनता मंहगाई व भ्रष्टाचार से त्रस्त हो और उसी देश के आध्यात्मिक गुरुओं के आश्रमों में अकूत मात्रा में धन सम्पदा हो। आध्यात्मिक गुरुओं के आश्रमों में हत्या और बलात्कार जैसे दुष्कर्म हो जाते हों और वो देश मेरा अपना भारत हो, तो मैं हँसूं या रोऊँ?

जो देश बायोटेक्नोलोजी के क्षेत्र में अपनी रिसर्च और उससे जुड़ी सुविधाओं के लिए विश्व में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता हो, उसी देश में संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार प्रति मिनट चार बच्चे रोकी जा सकने वाली बीमारियों से मर जाते हों और प्रतिदिन लगभग 1000 बच्चे अकेले डायरिया रोग से मर जाते हों। उसी देश के सबसे घनी आबादी वाले राज्य में स्वास्थ्य विभाग के करोड़ों रुपयों के घपले पर पर्दा ड़ालने के प्रयास में तीन-तीन उच्च पदस्थ अधिकारियों की हत्याएं हो जाती हों, तो मैं हँसूं या रोऊँ?

जिस देश में आज भी बसों और रेलगाडियों की छतों पर बैठ कर लोग यात्रा करते हों, और दूसरी ओर उसी देश में मुम्बई-देहली एयर कोरिडॉर विश्व के व्यततम एयर रूट्स में गिना जाता हो। जिस देश का रेलवे नेटवर्क विश्व का चौथा सबसे बड़ा नेटवर्क हो। दूसरी ओर अकेले मुम्बई शहर की उपनगरीय रेल सेवा भारतीय रेलवे की प्रतिदिन कुल यात्री संख्या के आधे से अधिक यात्रियों के आवागमन का साधन हो। जिस देश में टेलीकम्युनिकेशन उद्योग ने विश्व में तीव्रतम गति से प्रगति की हो और जिसके मोबाइल फोन उपभोक्ताओं का नेटवर्क चीन के बाद दूसरे नम्बर पर आता हो। जिसमें विश्व की सबसे व्यापक डाक व्यवस्था हो। उसी देश की गिनती विश्व के भ्रष्टतम देशों में नयी ऊचाइयां छू रही हो और वो देश मेरा अपना भारत हो, तो मैं हँसूं या रोऊँ?

उपरोक्त आँकड़े प्रकाशित और सहज सुलभ आँकड़े हैं। ये मेरे जैसे हर संवेदनशील नागरिक को सोचने के लिए विवश करते हैं। जिस स्वतंत्रता के लिए हमारे पूर्वजों ने अपने जीवन की आहुति दे दी, उनकी विरासत को इस तरह से संभाला और सहेजा हमने? आने वाली पीढ़ी को हम क्या इन विसंगतियों की विरासत सौंपेंगे? पल भर सोचिये, देश सिर्फ नेताओं से नहीं देशवासियों से बनता है। 15-64 वर्ष की उम्र की 64% आबादी वाला यह देश, विश्व की 10 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाने वाला यह देश भारतवर्ष हम सब का है, यह हम सब से उत्तरदायी आचरण की अपेक्षा रखता है।
- राजेन्द्र चौधरी

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