रविवार, अगस्त 21, 2011

अनुत्तरित जिज्ञासायें

मेरी अपनी कुछ जिज्ञासायें हैं जो अभी तक अनुत्तरित हैं, मुझे उनका कोई प्रामाणिक समाधान नहीं मिल पाया अभी तक। हो सकता है कि ये या इनमें से कुछ जिज्ञासायें आपकी भी हों या आपके पास इनके समाधान हों, इसलिए बांट रहा हूँ आपके साथ अपनी ये अनुत्तरित जिज्ञासायें:

1.कहा जाता है कि प्यार कभी मरता नहीं। मरता नहीं है, तो जाता कहाँ है?

2.कभी-कभी कुछ देख कर, सुन कर, पढ़ कर यकायक आँसू बह निकलते हैं। वो आँसू क्या शरीर में उसी क्षण बनते हैं? अगर नहीं, तो कहाँ छिपे रहते हैं?

3.कहा जाता है कि हर चीज का एक वक्त होता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि अच्छे काम या अच्छी चीज के लिए हर वक्त एक अच्छा वक्त है, क्यों? क्या बुरी चीज के लिए भी कोई खास वक्त है जो अच्छा होता है। अगर अच्छी चीज के लिए हर वक्त एक अच्छा वक्त है, तो बुरी चीज के लिए कोई भी वक्त हो बुरा है, ऐसा क्यों नहीं कहते हम? गुंजाइश क्यों रखते हैं?

4.हम जन्मदिन मनाते हैं, हमें खुशी क्या इस बात की होती है कि हमारी ज़िन्दगी का एक वर्ष कम हो गया? या फिर इस बात की चलो अच्छे से गुजर गया एक साल? क्या आशंकित रहते हैं हम? अगर दोनों बातें नहीं हैं तो फिर क्यों मनाते हैं जन्मदिन?

5.सब किस्मत के लिखे का खेल है। किस्मत का लिखा नहीं मिटता। कौन लिखता है किस्मत – भगवान। भगवान अपने लिखे को मिटा नहीं सकता? इतना मजबूर है वो सर्वशक्तिमान भगवान?

6.हम तो अपना दुख-दर्द आपस में बांट लेते हैं, भगवान अपना दुख-दर्द किसके साथ बांटता है? या वह संवेदनहीन है? हम सब का पिता है, तो पीड़ा तो उसको भी होती होगी। या ये सब व्यर्थ की बाते हैं, ईश्वर का कोई रूप नहीं है। फिर हम उसे रूप देने पर क्यों तुले हुए हैं?

7.हमारे यहाँ हिन्दू सनातन धर्म में सारे भगवान या भगवान के अवतार श्याम वर्ण के यानि साँवले ही क्यों है? कृपया यह तर्क न दें कि हमारे देश की जलवायु गर्म है और यहां सांवले व्यक्ति ही पैदा होते हैं। फिर सारे भगवान या भगवान के अवतारों की पत्नियां गौरवर्ण की यानि गौरी क्यों होती हैं?

8.हमारे यहाँ जो सृष्टि के पालक कहलाते हैं, यानि भगवान विष्णु, उनका वास समुद्र में और उनकी शैय्या शेषनाग की क्यों है? और जिनका दायित्व सृष्टि का कल्याण करना और उसका संहार करना है, यानि भगवान शिव, उनका वास पर्वत पर क्यों है? ऊपर से उनका भेस ऐसा क्यों है? पालक समुद्र में, और कल्याणकर्ता पहाड़ पर, समंवय कैसे बनता है दोनों में? या फिर यह सब झूठ है, किसी हित के लिए प्रतीक बनाये गये हैं? किसने बनाये ये प्रतीक? अगर व्यक्ति ने, चाहे वह व्यक्ति कितना भी बड़ा ज्ञानी क्यों न रहा हो, तो हम इन प्रतीकों को भगवान क्यों कहते हैं? भगवान का प्रतीक क्यों नहीं कहते? हम अपने पिताजी के फोटो को पिताजी का फोटो कहते हैं, पिताजी तो नहीं कहते उस फोटो को।

9.शरीर छोड़ने के बाद आत्मा कहाँ चली जाती है? फिर से नये शरीर में प्रवेश कर लेती है। किस शरीर में प्रवेश करेगी, क्या यह पहले से ही निर्धारित रहता है? अगर हाँ, तो इस जीवन के कर्मों के फल का क्या हुआ? अगर नहीं, तो जब तक उसके लिए नया शरीर निर्धारित हो, वह कहाँ पर रहती है?

10.क्या सृष्टि में आत्माओं की संख्या निश्चित है? अगर हाँ, तो जिस अवधि में किसी देश या स्थान पर अकाल, गृहयुद्ध या प्राकृतिक आपदाओं में हजारों व्यक्ति मर जाते हैं, उस अवधि के फौरन बाद किसी अन्य स्थान या देश की जनसंख्या में असाधारण रूप से वृद्धि क्यों नहीं देखी गयी? अगर नहीं, तो क्या आत्माओं के निर्माण का कोई कारखाना है? कितना उत्पादन होता है उसमें आत्माओं का? क्या कोई लक्ष्य निर्धारित रहता है?

11.क्या जीवों में भी आत्मा होती है? अगर हाँ तो पूरी दुनिया में मांसाहार पर पाबन्दी क्यों नहीं है, जैसे कि शायद हर जगह आदमी के मांस का सेवन निषिद्ध है? अगर नहीं, तो क्या ये जीव परमात्मा के रूप नहीं हैं?

12.हमारे यहाँ विद्या, शक्ति, धन जैसी मानवीय कामनाओं की पूर्ति का दायित्व देवियों के पास क्यों है? विद्या के लिए सरस्वती जी, शक्ति के लिए दुर्गा जी, धन के लिए लक्ष्मी जी... क्यों? क्या परमात्मा ने भी अपने विभागों का आबंटन किया हुआ है? अगर हाँ, तो इन शक्तियों के विभागों का दायित्व देवियों को ही क्यों सौंपा उसने? अगर इस व्यवस्था के पीछे कोई और गूढ़ अर्थ है तो वो क्या है?

जिज्ञासायें तो और भी बहुत हैं, लेकिन समय और लेख की सीमायें हैं। मैं जानता हूँ कि आपमें से कुछ दावा कर सकते हैं मेरी इन जिज्ञासाओं के या इनमें से कुछ के उत्तर देने का। स्वागत है उनका, लेकिन मुझे आस्था नहीं तर्कसंगत वैज्ञानिक आधार वाले उत्तर चाहियें। मेरे मन ने मुझे इन जिज्ञासाओं के स्व-स्फूर्त उत्तर भी सुझाये हैं, परंतु वे उत्तर प्रामाणिक नहीं हैं, इसलिए मैं आपके साथ उन्हें नहीं बांटना चाहता।
कृपया इन जिज्ञासाओं को बेतुका बता कर दरकिनार करने से पहले बस इतना ध्यान रखें कि किसी दिन आपके बच्चे या बच्चों ने आपसे ये प्रश्न पूछ लिये तो क्या उत्तर देंगे आप? “मुझे नहीं पता”, कह कर पल्ला झाड़ लेंगे, और बच्चे को छोड़ देंगे किसी भी गलत उत्तर को स्वीकार करने के लिए? अगर नहीं, तो पल भर सोचिये इनके उत्तर क्योंकि ये जिज्ञासायें स्वाभाविक हैं, बेतुकी नहीं।
- राजेन्द्र चौधरी

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