बुधवार, अगस्त 03, 2011

किससे कहूँ....

गरीब और अमीर शब्द सिर्फ व्यक्ति की आर्थिक हैसियत बताने के लिए ही प्रयोग नहीं किये जाते। कोई आदमी गरीब होते हुए भी दिल का अमीर हो सकता है और उसी तरह से कोई अमीर आदमी दिल से गरीब हो सकता है। यानि किसी व्यक्ति को सन्दर्भ विशेष में गरीब या अमीर कहा जा सकता है। इसी तरह से योग्य और अयोग्य शब्द हैं। कोई व्यक्ति किसी कार्य या पद विशेष के सन्दर्भ में योग्य या अयोग्य हो सकता है। या यूँ कहें कि कुछ निश्चित मापदंड या निर्धारित सीमायें हैं जिनको पूरा करने पर व्यक्ति को योग्य माना जाता है, अन्यथा अयोग्य। इसमें अपवाद शामिल नहीं हैं।

लेकिन कुछ शब्द ऐसे भी हैं जिन्हें लेकर मैं बहुत परेशान होता हूँ क्योंकि मुझे उनके लिए निश्चित किये गये मापदंड या निर्धारित की गयीं सीमायें आज तक पता नहीं चल सकीं। बहुत से लोगों से पूछा भी और किताबों में भी ढूँढा, पर उन सीमाओं के बारे में मैं आज भी अनजान हूँ। मसलन सज्जनता और कायरता। मैं इन दोनों शब्दों के अर्थ भली भाँति जानता हूँ, और यह भी जानता हूँ कि सज्जनता गुण है और कायरता दोष, लेकिन सज्जनता किस निर्धारित सीमा तक सज्जनता रहती है और फिर कायरता कहलाने लगती है?
सज्जनता की तरह ही सहनशीलता शब्द भी है, सहनशीलता गुण है लेकिन एक सीमा के बाद उसमें भी कायरता की गंध आने लगती है। वह सीमा कौनसी है? और क्या वह सीमा सब के लिए एक ही होती है या अलग-अलग?
क्षोभ और क्रोध शब्दों का अंतर भी बहुत बारीक है। कुछ विद्वान लोगों ने मुझे बताया कि क्षोभ एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है, क्रोध अवगुण है। यानि किसी गलत कार्य को होते हुए देख कर आपमें क्षोभ आना स्वाभाविक है, लेकिन क्रोध वर्जित है। ठीक से समझ तो नहीं आया लेकिन चलो फिलहाल मान लेते हैं, पर जो स्वाभाविक गुण है वह व्यक्त भी होगा। उसे व्यक्त करने का क्या ढंग होना चाहिये?
एक आम भारतीय नागरिक होने के नाते देश की वर्तमान स्थिति के बारे में मुझमें भी कुछ बातों को लेकर क्षोभ है, उसे कैसे व्यक्त करूँ? आज दबंगई सज्जनता और सहनशीलता के मुँह पर थूक रही है; झूठ पूजा जा रहा है, सच्चाई भिखारिन बनी द्वार-द्वार भटक रही है; आम आदमी असुरक्षित है; मँहगाई से, भ्रष्टाचार से, बेरोजगारी से त्रस्त है; बीमार होने पर इलाज करा पाना मुहाल है; नैतिक पतन चरम सीमा पर है; मानवता तार-तार है; संवेदनशीलता को कमजोरी और संवेदनहीनता को पेशेवर सोच का आवश्यक हिस्सा मान लिया गया है; दाँवपेंच को होशियारी और शराफत को भौंदूपन कहा जाने लगा है; हिन्दुस्तान में अंग्रेज़ी बोलना संभ्रांत कहे जाने के लिये व्यावहारिक रूप से अनिवार्य बन गया है; ठीक से हिन्दी नहीं बोल पाना या लिख पाना आम बात हो गयी है, बच्चे के हिन्दी विषय में कम नम्बर हों तो माता-पिता के माथे पर बल नहीं पड़ते पर अंग्रेज़ी में कम नम्बर बर्दाश्त नहीं; कानून का पालन करना किसी की जिम्मेदारी नहीं रह गयी है; कर्तव्यबोध तिरोहित हो गया है, अधिकारबोध सबको है; सामर्थ्य पूजित और सिद्धांत हेय हो गये हैं; नेता सर्वेसर्वा, प्रजा उपेक्षित; नेताओं को हर सुविधा मुफ्त या प्राथमिकता के आधार पर उपलब्ध, जनसामान्य को दो जून की रोटी मुहाल; नेताओं का खून खून, जनसामान्य का खून पानी; कोई नेता गुजरे तो ट्रैफिक रोक कर सड़क साफ, पब्लिक के लिए जानलेवा जाम; सीमा पर दुश्मन से लोहा लेते समय कभी किसी नेता का बेटा शहीद हुआ हो ऐसा कभी सुनने में क्यों नहीं आता; चुनाव मतपेटी लूटने पर गोली मार देने का प्रावधान है और देश की अस्मत लूटने वाले सरकारी मेहमान बने हुए हैं - निचली अदालत से उच्च अदालत, फिर सर्वोच्च अदालत, और उसके बाद राष्ट्रपति के पास दया याचिका के हकदार हैं। वर्षों से उनकी मेहमाननवाजी की जा रही है। मेहमाननवाजी भी कोई ऐसी वैसी नहीं, करोड़ों रुपये खर्च किये जा चुके हैं उनके लिए किये गये विशेष प्रबन्धों पर।
मेरी राजनीति में कोई रुचि नहीं है, आज के राजनेताओं के आचरण देख कर मुझे उबकाई आती है। मुझे ये हंसों के परिधान में गिद्ध दिखायी देते हैं।

मैं अपनी छटपटाहट किससे कहूँ, कैसे कहूँ, कौन सुनेगा? शायद मैं नहीं जानता, लेकिन मैं इतना ज़रूर जानता हूँ कि जिस पेड़ पर गिद्धों का वास हो जाता है, वह पेड़ सूखने लगता है।
- राजेन्द्र चौधरी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें