मेरा आज का यह लेख दिनाँक 12 अगस्त 2011 के इकॉनोमिक टाइम्स के मुम्बई संस्करण में प्रकाशित एक न्यूज़ स्टोरी से प्रेरित है। उस न्यूज़ स्टोरी में एक साहसिक उद्यमी गणेश कृष्णन के पीरज़ादा अबरार को दिये गये एक साक्षात्कार का सारांश प्रकाशित किया गया था।
पाँच साल पहले, उद्यमशील प्रवृत्ति के धनी गणेश कृष्णन ने ट्यूटरविस्टा नामक एक ऑनलाइन शिक्षा सेवायें प्रदान करने वाली कम्पनी शुरू करने का जोखिम उठाया। यह कम्पनी अमेरिका जैसे देशों को अपनी सेवायें उपलब्ध कराती थी। बैंगलोर स्थित इस कम्पनी के लिए उस समय का यह जोखिम भरा दांव अत्यंत लाभप्रद साबित हुआ क्योंकि यूके – स्थित पब्लिशिंग हाउस पीयरसन ने सिर्फ पाँच साल पुरानी इस कम्पनी, जिसका बाज़ार आस्ति मूल्यांकन लगभग 1000 करोड़ आँका गया, का बहुत बड़ा हिस्सा 577 करोड़ में खरीद लिया। गणेश की इस उद्यम यात्रा और उनकी इस कम्पनी ट्यूटरविस्टा को अगले तीन वर्षों में 1 बिलियन डॉलर की कम्पनी बनाने के उनके सपने की कहानी अब आगे खुद गणेश की ज़ुबानी सुनिये:
“यह बात 1990 की है जब मैं HCL में वरिष्ठ प्रबन्धन श्रेणी में कार्यरत था कि एक दिन बैठे-बिठाये मुझे उद्यमशीलता नाम का यह वायरस लग गया। मैं मध्यम-आय वर्ग के परिवार से आया था जिसके पास सम्पत्ति नाम की कोई चीज नहीं थी, यहाँ तक कि अपना मकान तक नहीं था। इसलिए मेरा यह निर्णय जोखिम भरा था जिससे अधिकतर लोग हतप्रभ थे क्योंकि तब नये उद्यम दुर्लभ थे और वेंचर कैपिटल नाम की चीज उस समय अस्तित्व में नहीं थी। मेरे पिताजी का जिस समय स्वर्गवास हुआ उस समय मेरी उम्र केवल नौ वर्ष थी। मेरी माँ, जोकि एक सरकारी नौकरी में थीं, ने बिना किसी पारिवारिक सम्पत्ति या सहारे के मेरी परवरिश बहुत मुश्किल हालात में की थी। बैंक से कर्जा जमानत के तौर पर सम्पत्ति बंधक रखने पर और केवल पूँजीगत खरीद के लिए उपलब्ध था। सेवायें सम्बन्धी बिजनेस तब तक लोगों ने सुना नहीं था। उस माहौल में मैंने और मेरे साझीदारों ने मिलकर 93000 रुपये जुटाये ताकि हम कॉर्पोरेट संस्थाओं के लिए कम्प्यूटर रखरखाव सम्बन्धी सेवायें प्रदान करने वाली IT&T नामक अपनी निजी कम्पनी शुरू कर सकें। मेरी माँ और मेरी पत्नी की माँ दोनों इस बात को लेकर परेशान थीं कि मैं एक अच्छी खासी आरामदायक कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ रहा हूँ और सारा पैसा ऐसे कारोबार में लगाने का जोखिम उठा रहा हूँ जिसमें किसी चीज का उत्पादन या निर्माण तक नहीं किया जाता। वे मुझे कम्प्यूटर मेकैनिक कह कर पुकारा करती थीं।
हमारी टीम ने बिना किसी बाहरी सहायता के, अपने बलबूते पर, 1990 से 1998 तक लगभग आठ वर्ष तक कम्पनी चलायी, और उस अवधि के दौरान हमारे 13 कार्यालय और 400 लोगों की टीम हो गयी। वर्ष 2000 में, हमारी कम्पनी एक लिमिटेड कम्पनी बनी और 2003 आते-आते हमने अपना बिजनेस iGate नामक कम्पनी को बेच दिया। मैंने, अपनी पत्नी मीना और एक अन्य बिजनेस साझीदार के साथ मिलकर CustomerAsset नाम का एक नया वेंचर शुरू किया। यह कम्पनी Yahoo और eBay जैसी इंटरनेट कम्पनियों को भारत से ई-मेल सहायता प्रदान करती। उसी वक्त IT बाज़ार में तेज़ गिरावट आयी और हमारे पास सर्विस करने के लिए कोई भी क्लाइंट नहीं रहा। मैंने ई-मेल सहायता से अपना ध्यान हटा कर वॉयस और कॉलसेंटर्स पर लगाया तथा Wal-Mart और Marks and Spencer’s जैसी बड़ी कम्पनियों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। दो वर्षों में हमारी कम्पनी में काम करने वाले लोगों की संख्या 1000 से भी अधिक हो गयी। मई 2002 में, भारत में निजी क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक ICICI ने, 20 मिलियन डॉलर से भी अधिक की धनराशि अदा करके CustomerAsset का अधिग्रहण कर लिया। CustomerAsset, ICICI का एक स्रोत और अब भारत में उनका पहला स्रोत बन गयी। मेरे तीसरे वेंचर Marketics Technologies को एक वैश्विक कारोबारी प्रक्रिया आउटसोर्सिंग कम्पनी WNS ने वर्ष 2007 में 63 मिलियन डॉलर में खरीद लिया।
जिस दौरान बैंगलोर IT परिदृश्य पर असाधारण रूप से छाया हुआ था, मेरी नज़र एक कार्टून पर पड़ी जिसमें एक पिता अपने बच्चे से कह रहा था: “नहीं! तुम अपना होमवर्क बैंगलोर को आउटसोर्स नहीं कर सकते!” इसने मेरे मन में एक नयी विचार प्रक्रिया को प्रज्वलित कर दिया। मैंने सोचा, क्यों नहीं? इस विचार से TutorVista की उत्पत्ति हुई, क्योंकि मेरी नज़र ने अमेरिकी स्कूल शिक्षा में उभरता हुआ मार्केट पहचान लिया था। अगर आप तकलीफ का केन्द्रीय बिन्दु पहचान लेते हैं तो आपको अपने नये वेंचर यानि उद्यम के लिए विचार का बीज मिल जाता है।
सफल उद्यमी बनने के लिए दो बुनियादी चीजें ज़रूरी होती हैं – किसी विचार के प्रति ज़ुनून और तमाम सहज बुद्धि के विपरीत यह यकीन कर लेने की मूर्खता कि वह विचार कामयाब होगा! और अंत में, अपनी संभाव्यता को अधिक से अधिक बढ़ायें क्योंकि आपके पास केवल एक ही ज़िन्दगी है और उसमें कोई जाँच-परख या परीक्षण नहीं हो सकता है। कुछ बड़ा करने का लक्ष्य रखिये – भले ही आपकी कोशिश नाकाम हो जाये, लेकिन नाकामी भी शानदार ढंग में हो!”
आपने इससे पहले भी बहुत सी प्रेरणादायक कहानियां पढ़ी और सुनी होंगी। कुछ बातें सामान्यतया ऐसी सभी कहानियों में पायेंगे आप - सृजनशीलता अभावों में पलती है; सपने देखने का हुनर और तकलीफ में अवसर तलाश लेने की पैनी नज़र ऐसी कुँजियां हैं जो तकदीर के बंद दरवाज़े खोल देती है; खुद पर भरोसा और ईमानदारी के साथ सही दिशा में अथक मेहनत करने का ज़ज्बा देर-सबेर मंज़िल तक पहुँचा ही देता है; नाकामयाब हो जाने का डर कामयाबी की दिशा में आगे बढ़ने से पहले ही हमें रोक देता है; मौलिक विचार, उस पर विश्लेषणात्मक गहन चिंतन व समझदारी पूर्ण जोखिम उठाने का जीवट सबके पास नहीं होता, शायद इसीलिए सबको असाधारण सफलतायें हासिल नहीं होतीं। किसी ने सही कहा है:
”मंज़िलें उन्हीं को मिलती हैं जिनके सपनों में जान होती है,
पंख तो महज़ एक दिखावा हैं, हौसलों में उड़ान होती है”
- राजेन्द्र चौधरी
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