शनिवार, अक्टूबर 01, 2011

एक अविस्मरणीय दीक्षांत भाषण

आज का यह लेख स्टीव जॉब्स के अंग्रेज़ी भाषा में दिये गये मूल भाषण का मेरे द्वारा किया गया हिन्दी अनुवाद है।

वह क्या विशेषता है जो स्टीव जॉब्स को इतनी प्रेरणादायक हस्ती बनाती है? इसके उत्तर में हम, ऐपल कम्प्यूटर के इस प्रसिद्ध संस्थापक और सीईओ का वह भाषण आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहे हैं जो उन्होंने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के छात्रों के दीक्षांत समारोह के अवसर पर दिया था। अत्यंत प्रेरणादायक और हृदयस्पर्शी उनका यह भाषण एक दुर्लभ और बहुमूल्य उद्बोधन है। यह व्यक्ति सिर्फ कम्प्यूटर, ऐनिमेशन कम्पनियों, फोन और आईपोड का अद्वितीय निर्माता ही नहीं है बल्कि उनका यह भाषण इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि वह भावों और शब्दों का जादू बुनने की कला में भी अद्वितीय रूप से कुशल और पारंगत हैं।

“धन्यवाद!
विश्व के सर्वोत्तम विश्वविद्यालयों में गिने जाने वाले इस विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में आप लोगों के साथ उपस्थित होकर मैं स्वयं को सम्मानित अनुभव कर रहा हूँ। सच कहूँ, मैं कभी भी किसी कॉलेज से ग्रेजुएशन नहीं कर पाया और मेरे जीवन में यह पहला ऐसा ग्रेजुएशन समारोह है जिसमें मैं उपस्थित हुआ हूँ।

आज मैं आपको अपनी ज़िन्दगी से ली गयीं तीन कहानियां सुनाना चाहता हूँ, बस। कोई बड़ी-बड़ी बातें नहीं। सिर्फ तीन कहानियां।

पहली कहानी बिन्दुओं को जोड़ने के बारे में है।

मैं रीड कॉलेज में पढ़ता था और मैंने पहले छह महीनों के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी थी, लेकिन वास्तव में पढ़ाई छोड़ने से पहले मैं अगले लगभग अठारह महींनो तक वहाँ पर आता-जाता रहा। तो फिर मैंने पढ़ाई क्यों छोड़ी?

इसकी शुरुआत मेरे पैदा होने से पहले ही हो गयी थी।

मैं जिस माँ की कोख से पैदा हुआ, वह एक जवान, अनब्याही, ग्रेजुएट छात्रा थी और उसने तय किया कि वह मुझे किसी को गोद दे देगी। वह प्रबल रूप से ऐसा महसूस करती थी कि कोई ग्रेजुएट व्यक्ति ही मुझे अपनाये यानि गोद ले, इसलिए मेरे लिए हर चीज पहले से ही तय थी कि मेरे पैदा होने पर एक वकील और उसकी पत्नी मुझे गोद ले लेंगे। लेकिन जब मैं पैदा हुआ, तो उन्होंने आखिरी क्षणों में तय किया कि दरअसल वे एक बच्ची चाहते थे।

इसलिए मेरे माता-पिता जिन्हें प्रतीक्षा सूची में रखा गया था, उन्हें आधी रात को फोन करके पूछा गया, ‘हमारे पास एक अप्रत्याशित बच्चा है। क्या आप उसे गोद लेना चाहेंगे?’ उन्होंने कहा, ‘बेशक’।

मेरी जन्मदात्री माँ को बाद में पता चला कि मेरी माँ ने कभी भी ग्रेजुएशन नहीं किया था और मेरे पिता हाईस्कूल भी पास नहीं कर पाये थे। मुझे जन्म देने वाली माँ ने गोद लेने के कागज़ात पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया। कुछ दिन बाद जब मेरे माता-पिता ने उनसे यह वादा किया कि वे मुझे कॉलेज ज़रूर भेजेंगे, तब जाकर ही उनका रुख नर्म पड़ा और उन्होंने अपनी मंजूरी दे दी।

यह मेरी ज़िन्दगी की शुरुआत थी।

और सत्रह वर्ष के बाद, मैं निश्चय ही कॉलेज गया, लेकिन मैंने नौसिखियेपन में ऐसा कॉलेज चुना जो स्टैनफोर्ड जितना ही मंहगा था, और मेरे नौकरीपेशा माता-पिता की सारी बचत मेरे कॉलेज के ट्यूशन पर खर्च हो जाती थी।

छह महीने के बाद मुझे यह उपयोगी नहीं लगा।

मुझे कुछ मालूम नहीं था कि मैं ज़िन्दगी में क्या करना चाहता हूँ, और कॉलेज इस बारे में मेरी कैसे मदद कर पायेगा यह बात भी मेरी समझ से बाहर थी, और इधर मैं अपने माता-पिता की ज़िन्दगी की सारी कमाई खर्च किये दे रहा था।
इसलिए मैंने पढ़ाई छोड़ने का मन बना लिया और यकीन कर लिया कि सब ठीक हो जायेगा।
उस समय यह निर्णय काफी डरावना था, लेकिन अब पीछे मुड़ कर देखता हूँ तो लगता है कि यह मेरे द्वारा लिये गये सबसे अच्छे निर्णयों में से एक था।
पढ़ाई छोड़ने का निर्णय ले लेने पर उन कक्षाओं में, जिनमें मेरी रुचि नहीं थी, जाना मेरे लिए ज़रूरी नहीं रहा था और मैंने उन कक्षाओं में जाना शुरू कर दिया जो मुझे कहीं अधिक रोचक लगती थीं।
यह सब उतना रोमांटिक नहीं था।
मेरे पास छात्रावास का कमरा नहीं था, तो मैं दोस्तों के कमरे में फर्श पर सोया।
मैं कोक की बोतलें वापस करके पाँच सेंट जमा करता था ताकि मैं खाने के लिए भोजन खरीद सकूँ और मैं सात मील पैदल चल कर हर रविवार की शाम को हरे कृष्णा मन्दिर जाता था ताकि मैं हफ्ते में एक बार तो ठीक-ठाक भोजन कर सकूँ।
मुझे ऐसा करना अच्छा लगता था।
और मैंने अपनी जिज्ञासा और सहज बुद्धि का कहा मान कर जो भूल की थी वह बाद में बहुमूल्य साबित हुई।

मैं आपको इसका एक उदाहरण देता हूँ।

रीड कॉलेज उस समय कैलिग्राफी (सुलेख) की शिक्षा के लिए शायद देश में सबसे अच्छा माना जाता था।
पूरे कैम्पस में हर पोस्टर और हर अलमारी व दराज पर लगा हर लैबल हाथ से खूबसूरत लिखावट में लिखा होता था।
चूँकि मैंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी और मुझे अपनी सामान्य नियमित कक्षाओं में नहीं जाना होता था, इसलिए मैंने कैलिग्राफी की कक्षा में जाने का निश्चय किया ताकि मैं जान सकूँ कि किस तरह इतना सुन्दर लिखा जाता है। मैंने सेरिफ और सैंस सेरिफ (अक्षरों के अंत की लघु रेखा और लघु रेखा रहित) टाइपफेस के बारे में, अलग-अलग अक्षरों को जोड़ने में बीच की जगह में बदलाव करने के बारे में, और उन सब चीजों के बारे में सीखा जिनकी वजह से कोई अच्छा लेखन अच्छा बन पाता है।
यह खूबसूरत, ऐतिहासिक, और कलात्मक तौर पर ऐसी बारीक चतुराई थी जो विज्ञान की पकड़ से बाहर थी, और मुझे यह आकर्षक लगी।

इनमें से किसी भी चीज के मेरे जीवन में व्यावहारिक रूप से उपयोगी होने की कोई उम्मीद तक नहीं थी। लेकिन दस साल बाद जब हम पहला मैकिंटोश कम्प्यूटर डिजाइन कर रहे थे, तो मुझे इन सब चीजों का ख्याल आया, और हमने इन सबको मैकिंटोश में डिजाइन किया।
सुन्दर टाइपोग्राफी वाला यह पहला कम्प्यूटर था।
अगर मैं कॉलेज में कैलिग्राफी की उस अकेली कक्षा में नहीं गया होता, तो मैकिंटोश में कभी भी इतने अलग-अलग टाइपफेस, या अनुपातिक तौर पर दो अक्षरों के बीच में जगह वाले फोंट नहीं होते, और क्योंकि माइक्रोसॉफ्ट ने केवल मैकिंटोश की नकल की, इसलिए सम्भव है कि किसी भी कम्प्यूटर में वे नहीं होते।
अगर मैं कभी भी पढ़ाई नहीं छोड़ता, तो मैं कभी भी कैलिग्राफी की कक्षा में नहीं जाता, और पर्सनल कम्प्यूटरों में कभी भी वो लाजवाब टाइपोग्राफी नहीं होती जो आज है।
जब मैं कॉलेज में था, तो भविष्य की ओर देखते हुए बिन्दुओं को जोड़ना निश्चय ही असम्भव था, लेकिन दस वर्ष बाद पीछे देखने पर यह सब कितना स्पष्ट दिखता था।
आप आगे देखते हुए बिन्दुओं को नहीं जोड़ सकते। आप उन्हें सिर्फ पीछे की ओर देख कर ही जोड़ सकते हैं। इसलिए आपको यह यकीन करना होता है कि बिन्दु किसी न किसी तरह आपके भविष्य में जुड़ जायेंगे।

आपको किसी न किसी चीज में विश्वास या भरोसा करना होता है, अपनी हिम्मत पर, किस्मत पर, कर्म पर, या जिस किसी पर भी – क्योंकि यह भरोसा कि ये बिन्दु आपको आपकी ज़िन्दगी के रास्ते से जोड़ देगें, आपमें अपने दिल की बात मानने का विश्वास पैदा करेगा, भले ही वह रास्ता ऐसा क्यों न हो जिस पर लोगों की आवाजाही नहीं होती हो, बस वह ही सारा फर्क पैदा कर देगा।

मेरी दूसरी कहानी प्यार और नुकसान के बारे में है।

मैं भाग्यशाली था। मुझे क्या करना अच्छा लगता है इसका पता मुझे अपनी ज़िन्दगी में ज़ल्दी ही चल गया था।
जब मैं बीस साल का था तो वॉज़ ने और मैंने मिल कर अपने माता-पिता के गैरेज में ऐपल कम्प्यूटर की शुरुआत की।
हमने कड़ी मेहनत की और दस साल के अन्दर, गैरेज में हम दो लोगों से शुरू हुआ ऐपल 4000 से भी अधिक कर्मचारियों वाली 2 बिलियन डॉलर की कम्पनी बन गया। अपनी उच्च श्रेणी के शानदार मैकिंटोश को बाजार में उतारे हुए अभी एक साल ही हुआ था और मैं अभी तीस वर्ष का ही हुआ था कि मुझे नौकरी से निकाल दिया गया।
आप सोचेंगे कि जो कम्पनी आपने खुद शुरू की हो, उससे आपको कैसे निकाला जा सकता है? तो हुआ यूँ कि जब ऐपल बड़ी कम्पनी बन गयी, तो हमने एक ऐसे व्यक्ति को नौकरी पर रख लिया जो मेरे साथ कम्पनी को चलाने के लिए मेरे विचार से बहुत प्रतिभाशाली था। पहले साल सब कुछ ठीक चला। लेकिन हमारे भविष्य के दृष्टिकोणों में मतभेद शुरू हो गये, और अंतत: हम अलग हो गये।
जब ऐसा हुआ, तो हमारे निदेशक मंडल यानि बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने उसका पक्ष लिया, और इस तरह तीस वर्ष की उम्र में मुझे बाहर कर दिया गया, और खुले आम बाहर कर दिया गया। जो चीज मेरी पूरी युवावस्था का फोकस रही थी वही चली गयी, और यह सब मेरे लिए एक तबाही जैसा था।

कुछ महीनों तक वास्तव में मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था कि क्या किया जाये।
मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैंने उद्यमी लोगों की पहली पीढ़ी को शर्मसार कर दिया हो, मानो उनके द्वारा मुझे बैटन सौंपे जाने के समय ही वह मेरे हाथ से गिर गयी हो।
मैं डैविड पैकर्ड और बॉब नॉयस से मिला और इतनी बुरी तरह से पंगा लेने के लिए मैंने उनसे माफी मांगने की कोशिश की।
मैं एक बहुत बड़ी सार्वजनिक विफलता का किस्सा बन गया था, यहाँ तक कि मेरे मन में सिलिकॉन वैली से भाग जाने का विचार भी आया।

लेकिन धीरे-धीरे मुझे कुछ समझ आने लगा। मैंने जो कुछ किया उससे मुझे अभी भी लगाव था।
ऐपल की इन घटनाओं के इतने बदलाव पर भी मेरे उस लगाव में कोई बदलाव नहीं आया। मुझे नकार दिया गया था, पर मुझे अभी भी उस सब से प्यार था। इसलिए मैंने फिर से शुरुआत करने की ठानी।
उस समय मुझे यह दिखायी नहीं दिया, लेकिन बाद में मुझे लगा कि ऐपल से निकाला जाना मेरे लिए सबसे ज्यादा फायदेमन्द रहा।
कामयाब शख्स होने के भारीपन की जगह मैं फिर से नौसिखिया होने का, हर चीज के बारे में कम निश्चित होने का हल्कापन महसूस करने लगा था। इसने मुझे अपने जीवन की सर्वाधिक रचनात्मक अवधियों में गिने जाने वाले काल में प्रवेश करने की स्वतंत्रता दी।
अगले पाँच वर्षों के दौरान मैंने नेक्स्ट नाम की एक कम्पनी शुरू की, और फिर पिक्सर नाम की एक दूसरी कम्पनी और मुझे एक असाधारण महिला से प्यार हो गया जो मेरी पत्नी बनने वाली थी।
पिक्सर ने दुनिया की पहली कम्प्यूटर-ऐनिमेटेड फीचर फिल्म टॉय स्टोरी बनाने का काम जारी रखा, और अब यह दुनिया का सबसे कामयाब ऐनिमेशन स्टुडियो है।
घटनाओं ने एक असाधारण मोड़ लिया, ऐपल ने नेक्स्ट कम्पनी को खरीद लिया। मैं ऐपल में फिर से वापस आ गया और जो टेक्नोलोजी हमने नेक्स्ट में विकसित की थी अब ऐपल की वर्तमान नवचेतना के केन्द्र में वही है, और लॉरेन के साथ मैं एक खूबसूरत गृहस्थ जीवन जी रहा हूँ।
मैं निश्चित रूप से जानता हूँ कि अगर मुझे ऐपल से नहीं निकाला जाता, तो यह सब कुछ हासिल नहीं होता। यह एक बेहद कड़वी दवाई थी लेकिन शायद मरीज को इसकी ज़रूरत थी।
कभी-कभी ज़िन्दगी आपके सिर पर ईंट से प्रहार करती है। बस अपने विश्वास को मत डगमगाने दो।
मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि मैं इस सबसे सिर्फ इसलिए उबर पाया क्योंकि जो कुछ मैंने किया, मैं उससे प्यार करता था।
जिसे आप प्यार करते हैं उसे आपको खुद ढूँढना होगा, और यही बात काम के विषय में लागू होती है।
आपकी ज़िन्दगी का एक बड़ा हिस्सा काम करने में गुजरता है, और सच में संतुष्ट महसूस करने का एकमात्र तरीका है वह काम करना जिसे आप शानदार काम मानते हों, और शानदार काम करने का एकमात्र तरीका है आप जो भी करें उसे प्यार करें।
अगर आप उसे अभी तक नहीं ढूँढ पाये हैं, तो ढूँढते रहिये, और जब तक वह मिल न जाये, तब तक चैन से मत बैठिये।
जैसा कि दिल के सभी मामलों में होता है, जब वह मिलेगा तो आपको खुद पता चल जायेगा, और किसी भी अच्छे रिश्ते की तरह यह वक्त गुजरने के साथ और बेहतर होता जाता है। इसलिए ढूँढते रहिये, और जब तक वह मिल न जाये, तब तक चैन से मत बैठिये।

मेरी तीसरी कहानी मौत के बारे में है।

जब मैं सत्रह साल का था, तो मैंने कहीं एक कहावत पढ़ी थी जो कुछ इस तरह से थी, ‘अगर आप हर दिन को इस तरह से जीते हैं जैसे वह आपका आखिरी दिन हो, तो एक न एक दिन आप निश्चित रूप से पायेंगे कि आपका सोचना सही था’।
इस कहावत ने मुझ पर बहुत असर ड़ाला, और तभी से, पिछले 33 सालों से, मैं रोजाना सुबह आईने में देखता हूँ और खुद से पूछता हूँ, ‘अगर आज मेरी ज़िन्दगी का आखिरी दिन होता, तो क्या मैं वह करना चाहता जो मैं आज करने जा रहा हूँ’? और जब कभी भी लगातार कई दिनों तक मेरा दिल ‘नहीं’ में जवाब देता है, तो मैं जान जाता हूँ कि मुझे इसमें कुछ न कुछ बदलना चाहिये।
बड़े निर्णय लेने में मदद करने के लिए मुझे यह याद रखना सबसे महत्वपूर्ण लगा कि जल्दी ही मेरी मृत्यु हो जायेगी, क्योंकि लगभग सभी चीजें – सभी बाहरी अपेक्षायें, सारे अभिमान, विफलता या शर्मिन्दगी के सारे डर – मौत के सामने ये सब छिटक जाते हैं, बस वही बचा रहता है जो सचमुच महत्वपूर्ण है।
यह याद रखना कि आप मरने वाले हैं, मेरे विचार से इस जाल से बचने का भी सबसे अच्छा तरीका है कि आप कुछ गंवा देंगे, खो बैठेंगे। आप पहले ही नंगे हो चुके हैं, अब क्या खोयेंगे। इसलिए आपके पास अपने दिल की बात नहीं मानने का कोई कारण नहीं है।

लगभग एक साल पहले, पता चला कि मुझे कैंसर है।

सुबह 7:30 बजे मैंने स्कैन कराया तो उसमें स्पष्ट रूप से मेरी पाचक ग्रंथि (पैनक्रियाज़) में ट्यूमर दिखायी दिया। मुझे यह भी मालूम नहीं था कि पैनक्रियाज़ क्या होती है।
डॉक्टरों ने मुझे बताया कि यह निश्चित रूप कैंसर की एक ऐसी किस्म है जो लाइलाज है, और मुझे तीन से छह महीनों से ज्यादा जीने की उम्मीद नहीं रखनी चाहिये। मेरे डॉक्टर ने कहा कि मैं घर जाकर अपनी चीजों को व्यवस्थित करलूँ। शायद वह शालीन भाषा में कह रहा था कि मैं मरने की तैयारी करलूँ।
इसका मतलब था कि आप इन कुछ ही महीनों अपने बच्चों को वह सब बताने की कोशिश करो जो आपको उन्हें अगले दस-पन्द्रह सालों में बताना था। इसका मतलब था कि आपका परिवार आपको खोने के लिए तैयार हो जाये। इसका मतलब था कि आपका हमेशा के लिए अलविदा कहने का समय आ गया है।

मैं पूरे दिन डॉक्टरों के उस निर्णय के साथ जिया।

शाम को मेरी बायोप्सी हुई, जिसमें उन्होंने मेरे गले से पेट तक एंडोस्कोप डाला और मेरी पैनक्रियाज़ के उस ट्यूमर से एक सुंई के ज़रिये कुछ कोशिकायें निकालीं।
मुझे बेहोश कर दिया गया था लेकिन मेरी पत्नी ने, जो उस समय बहाँ पर मौजूद थी, मुझे बताया कि जब डॉक्टर ने उन कोशिकाओं को माइक्रोस्कोप से देखा तो वह चिल्लाने लगा, क्योंकि उसने पाया कि वह पैनक्रियाज़ एक ऐसा दुर्लभ कैंसर था जिसका सर्जरी से इलाज सम्भव था।
मेरी सर्जरी की गयी, और ईश्वर की कृपा से मैं अब भला चंगा हूँ।

उस वक्त मैंने मौत को बहुत करीब से देखा था, और मैं आशा करता हूँ कि आने वाले कुछ दशकों तक मेरा वह मौत से निकटतम साक्षात्कार रहेगा।
पहले मृत्यु के बारे में मेरी विशुद्ध बौद्धिक अवधारणा थी, लेकिन इस सब से गुजरने के बाद मैं अब आपको इसके बारे में अधिक निश्चितता के साथ कह सकता हूँ।
कोई भी मरना नहीं चाहता, यहाँ तक कि जिन्हें स्वर्ग की चाह है वे भी स्वर्ग पाने के लिए मरना नहीं चाहते, और फिर भी मृत्यु हम सब के लिए एक ऐसा गंतव्य है जिससे कभी कोई नहीं भाग सका।
और ऐसा होना भी चाहिये, क्योंकि मृत्यु सम्भवतया जीवन का एकमात्र सर्वोत्तम आविष्कार है।
यह जीवन का परिवर्तन एजेंट है; मृत्यु पुराने को हटा कर नये के लिए रास्ता बनाती है।
इस समय आप नये हैं। लेकिन वह दिन बहुत दूर नहीं है जब आप धीरे-धीरे किसी दिन पुराने हो जायेंगे और आपको भी हटा दिया जायेगा। इतना नाटकीय होने के लिए मुझे खेद है, लेकिन सच्चाई यही है।
आपका समय सीमित है, इसलिए किसी और की ज़िन्दगी जीने में इसे बर्बाद मत कीजिये।
उस हठधर्मिता के जाल में मत फंसिये, जो दूसरे लोगों की सोच के नतीजों के साथ जी रही है।
अपने अन्दर की, अपने दिल की, और अपनी सहज बुद्धि की आवाज़ को दूसरों के विचारों के शोर में डूबने मत दीजिये। उन लोगों को पता नहीं कैसे पहले से ही मालूम होता है कि आप सचमुच क्या बनना चाहते हैं।

बस यही बात मुख्य है, बाकी सबकुछ गौण है”।

- राजेन्द्र चौधरी द्वारा अनुवादित

2 टिप्‍पणियां:

  1. aadarniya bhai saheb,
    kya tippani karu is lekh par. lekin afsos yeh hai ki yahan par isko padhne wale hi nahin hain. kash nai umra ke naujawan jo jeevan ki shuruaat kar rahe hain, ise padhe. shayad jindgi hi badal jaye unki. baut hi prernadayak lekh hai yeh. Shubhkamnaayen.

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  2. धन्यवाद अनिल, मन के किसी कोने में थोड़ा यह अफसोस मुझे भी है कि आज जानकारी का जितना भंडार सहजता से उपलब्ध है उतना हमारी उस उम्र में नहीं था, लेकिन आज का युवा वर्ग, खास तौर से अपने यहाँ का युवा वर्ग कुछ और ही पढ़ना चाहता है। खैर, मुझे लगा कि यह भाषण हिन्दी के पाठकों तक भी पहुँचना चाहिये सो मैंने अपना दायित्व निभाया है। आभार और आशीष!

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