बुधवार, अक्टूबर 12, 2011

छोटी-छोटी बातें

एक दिन एक आदमी अपनी नयी कार को पॉलिश कर रहा था। आदमी की पत्नी घर पर नहीं थी, तो उसका चार साल का बच्चा बड़े चाव से अपने पिता को कार चमकाते हुए देखने लगा। अचानक बच्चे को पता नहीं क्या सूझा उसने एक नुकीला पत्थर उठाया और कार के पीछे जाकर उस पर कुछ खरोंच दिया। पिता की नज़र पड़ी तो वो गुस्से से आग बबूला हो उठा और उसने गुस्से में उसी पत्थर से बच्चे के हाथ की सारी उँगलियां तोड़ ड़ालीं। बच्चा चिल्लाता रहा पर बाप तो अपना आपा खो चुका था। खैर, बच्चा उठा, घर के अन्दर गया और उसने डिटॉल की शीशी ली और उसे खोल कर अपनी उँगलियों पर उंडेल लिया और पट्टी लपेट ली। थोड़ी देर बात पिता घर के अन्दर आया, उसने बच्चे का हाथ देखा और मन ही मन खुद को कोसने लगा। बच्चे ने अपना हाथ पिता के आगे करते हुए पूछा, “पापा! अब मेरा हाथ कब ठीक होगा?” पिता के पास कोई जवाब नहीं था। उसे खुद पर बहुत गुस्सा आया। वह घर से बाहर निकला और उसने झुँझला कर कार को एक लात मारी। तभी उसकी नज़र बच्चे के द्वारा खींची गयी लाइनों पर गयी। उसने गौर से देखा, बच्चे ने आड़े-टेढ़े अक्षरों में लिखा हुआ था - “आई लव यू पापा!”

आदमी वापस घर में आया, बच्चे से नज़रें बचा कर चुपचाप अपने बेडरूम में गया और पंखे से लटक कर उसने आत्महत्या कर ली।

क्रोध और प्रेम ऐसे प्रबल भाव हैं जो बेकाबू होने पर सब सीमायें लाँघ जाते हैं। हम चीजें अपने और अपने लोगों की खुशी के लिए खरीदते हैं, लेकिन हम चीजों को इस्तेमाल करने और लोगों को सहेजने के बजाय चीजों को सहेजने लगते हैं और लोगों को इस्तेमाल करने लगते हैं। फिर अपने किये का परिणाम भोगने से कतरा कर पलायन का घातक रास्ता ढूँढते हैं। दोनों क्रियाओं में हम अपने प्रियजनों को ही आहत करते हैं। मुझे मैनेजमेंट गुरु स्टीफन आर. कॉवि की पंक्ति याद आ गयी कि हमारी ज़िन्दगी में सिर्फ दस प्रतिशत अप्रत्याशित घटता है, बाकी का नब्बे प्रतिशत उस दस प्रतिशत अप्रत्याशित घटने पर हमारे द्वारा की गयी प्रतिक्रिया द्वारा ही निर्धारित होता है।

हमारे बच्चे हमें इसलिए याद नहीं रखेंगे कि हम उनके लिए कितना पैसा, कितनी जायदाद छोड़ कर गये। वे हमें याद करेंगे तो उन जीवन मूल्यों के लिए जो हमने उन में रोपे। वे याद करेंगे उन स्नेहिल भावनाओं के लिये जो हमने अपने व्यवहार में उनके प्रति ईमानदारी के साथ प्रदर्शित की। ईमानदारी और सच्चाई सिर्फ काम में ही ज़रूरी नहीं होती, रिश्ते में और आचरण में उसकी ज़रूरत कहीं अधिक होती है। कभी सोचना कि एक दूसरे के प्रति इतना अविश्वास कहाँ से आया, आपके अन्दर से जवाब आयेगा अपने और दूसरों के प्रति ईमानदार न रहने से।

एक छोटी बच्ची और एक छोटा बच्चा खेल रहे थे। बच्ची की जेब में टॉफियां भरी हुई थीं और बच्चे की जेब में कंचे। बच्ची को कंचे अच्छे लगे और बच्चे को टॉफी। बच्ची ने बच्चे से कंचे मांगे, बच्चे ने कहा कि पहले मुझे टॉफी दो। बच्ची बोली कि मैं तुम्हें अपनी सारी टॉफियां दे दूँगी, तुम मुझे अपने सारे कंचे दे दो। बच्चा तैयार हो गया। बच्ची ने अपनी सारी टॉफियां जेब से निकाल कर रख दीं। बच्चे ने जेब से सारे कंचे निकाले लेकिन जो सबसे बड़ा और सबसे खूबसूरत कंचा था, उसे अपनी जेब में ही रहने दिया। दोनों बहुत खुश हुए, कुछ देर खेले और फिर अपने घरों को वापस चले गये।

रात में बच्ची तो चैन से सोयी लेकिन बच्चे को नींद नहीं आयी। वह सोचता रहा कि ऐसा हो सकता है उस बच्ची ने भी सबसे अच्छी वाली टॉफी छिपा ली हो? अपनी बेईमानी आपको दूसरे के प्रति सशंकित बना देती है।

मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि कोई भी रिश्ता हो या कोई भी काम हो, अगर आप ईमानदारी के साथ अपना शत प्रतिशत नहीं दे सकते तो बेहतर है आप उससे दूर ही रहें।

ज़िन्दगी में हर कोई कुछ बड़ा करना चाहता है और भूल जाता है कि ज़िन्दगी छोटी-छोटी बातों, छोटी-छोटी चीजों से मिल कर बनी है। इन छोटी-छोटी बातों में चूके तो समझो चुक गये।

- राजेन्द्र चौधरी

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