मैंने अपने पहले किसी लेख में लिखा था कि प्रेम आत्मा का भोजन है। ये शब्द मैंने कई वर्ष पहले ओशो के व्याख्यान की एक ऑडियो कैसेट में सुने थे। तब से ये शब्द मेरे अंतरमन में बस गये। मैं अपने जीवन में ऐसे कई लोगों से मिला हूँ जिनके चेहरे से, जिनके व्यवहार से स्पष्ट जाहिर होता है कि वे अतृप्त आत्मा हैं। न उन्होंने किसी को भरपूर प्यार किया, न ही उन्हें भरपूर प्यार मिला। प्रेम के नाम पर थोड़ी बहुत दैहिक क्रियाओं तक ही सीमित रह गया उनका जीवन। कभी इससे आगे सोचा नहीं उन्होंने, कभी इससे आगे बढ़े नहीं वे लोग। आज इसी पर थोड़ी चर्चा कर लेते हैं।
एक अंग्रेज़ी पुस्तक है – “I am OK, You are OK”, उसमें बताया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति में बच्चा, व्यस्क, और बुजुर्ग तीनों व्यक्तित्व होते हैं। उसी तरह जीवन को भी आसानी से समझने के लिए थोड़ी देर के लिए अगर हम भोजन को प्रतीक मान कर उसका वर्गीकरण करें; तो बचपन हुआ नाश्ता, व्यस्क काल हुआ लंच, और प्रौढ़ावस्था और बुढ़ापे का समय हुआ डिनर। अगर आपको किसी दिन आपका नाश्ता न मिला हो, तो आप दोपहर के खाने के समय पर बहुत अधिक बल्कि असामान्य रूप से भूख महसूस करेंगे। यदि दोपहर का भोजन भी छूट गया हो, तो रात के भोजन के समय तो आप भूख से लगभग पगला ही जायेंगे यानि बिलबिला उठेंगे।
प्रेम आत्मा का भोजन है। जब कोई बच्चा पहली बार अपनी मां का स्तनपान करता है, तो वह केवल दूध नहीं बल्कि दो चीजें पा रहा होता है – दूध और प्रेम। दूध उसके शरीर में जा रहा होता है और प्रेम उसकी आत्मा में। दूध दिखता है जैसे कि शरीर दिखता है; प्रेम अदृश्य है, जैसे कि आत्मा अदृश्य है। यदि आपके पास देख सकने वाली आखें हैं, तो आप दोनों चीजों को एक साथ मां के स्तन से बच्चे के अंतरतम में जाता हुआ देख सकते हैं। दूध सिर्फ प्रेम का दिखने वाला भाग है; ममता, स्नेह, करुणा, आशीर्वाद - दूध का अदृश्य भाग है।
यदि बच्चे से उसका नाश्ता छूट गया है, तो जब वह जवान होगा उसे प्रेम की बहुत ज्यादा जरुरत होगी और वह परेशानी पैदा कर सकती है। तब वह प्रेम के लिए बहुत अधीर होगा और वह मुसीबत पैदा कर सकता है। वह प्रेम के लिए बहुत जल्दी में होगा और यह उसकी जल्दी मुश्किल पैदा करती है क्योंकि प्रेम बहुत धीरे-धीरे बढ़ता है, प्रेम धैर्य चाहता है। और जितने ज्यादा आप जल्दी में होंगे, उतनी ही ज्यादा संभावना इस बात की होगी कि आप प्रेम को अपने हाथ से गंवा दे।
आपने देखा होगा जिन्हें प्रेम की बहुत अधिक ज़रुरत होती है वे हमेशा परेशान रहते हैं क्योंकि वे हमेशा महसूस करते हैं कि कोई उनकी ज़रुरतें पूरी नहीं कर रहा है। दरअसल, कोई भी दोबारा उनकी मां बनने नहीं जा रहा है। मां–बच्चे के रिश्ते में, बच्चे से कोई उम्मीद नहीं की जाती थी। एक बच्चा क्या कर सकता है? वह असहाय है। वह कुछ भी वापस नहीं कर सकता, ज्यादा से ज्यादा वह मुस्कुरा सकता है, खुशी की भाव-भंगिमाएं प्रदर्शित कर सकता है, बस। यदि आपने नाश्ते का समय यानि बचपन का प्यार गंवा दिया, तो आप युवावस्था में कोई ऐसी महिला ढूंढ़ रहे होंगे जोकि आपकी मां बन सके। अब, महिला युवावस्था में प्रेमी ढूंढ़ रही होगी, ना कि पुत्र; तो परेशानी तो होनी ही है। अगर संयोगवश या दुर्योगवश, आपको कोई ऐसी महिला भी गयी जो पुत्र ढूंढ़ रही हो, तो दो बीमारियां एक दूसरे मे मिल जाएंगी तथा उस निकटता में और अधिक विकटता पैदा हो जायेगी। वे दोनों कभी परपीड़ित नज़र आयेंगे, तो कभी परपीड़क। विश्वास कीजिये, मेरी रिश्तेदारी में ही एक दम्पति ऐसे हैं, बल्कि वे ही मेरे इस लेख की प्रेरणा बने हैं।
ऐसे लोग भी हैं जो दोपहर के खाने से भी वंचित रह गए। तब बुढ़ापे में वे लोग वैसे ही बन जाते हैं जिन्हें आम बोलचाल में “सनकी बुड्ढा” कहा जाता है। वे बुढ़ापे में लगातार उसी के बारे में सोचते रहते हैं जो उन्हें नहीं मिला या जिसे उन्होंने अपनी मूर्खतावश गंवा दिया। हो सकता है वे इस बारे में सीधे बात करते दिखायी न दें लेकिन उनके अंतरमन में यही सब कुछ चल रहा होता है। इन लोगों से दोपहर का भोजन भी छूट गया है और अब डिनर का समय आ गया है तो वे आपा खो रहे हैं। वे जानते हैं कि अब मौत नजदीक आ रही है। जब मौत करीब आ रही है, और उनके हाथों से समय निकला जा रहा है, तो उनकी विक्षिप्तता स्वाभाविक भी है। ऐसे ही लोगों ने स्वर्ग में सुन्दर अप्सराओं की कहानियां गढ़ रखी हैं। अंतिम भोजन के समय उनकी कल्पना उनसे खेल खेल रही होती है। यह उनकी कल्पना है, भूखी कल्पना, जैसे भूखे व्यक्ति को पूर्णिमा का चाँद भी रोटी जैसा दिखायी देता है।
इसलिए बेहतर है कि समय रहते आत्मा को स्वस्थ और पौष्टिक भोजन देकर तृप्त करें। प्रेम को जीना सीखें, उसे देह के दायरों से बाहर निकालें, वह आत्मा के लिए टॉनिक बन जायेगा। आत्मा सबल और पुष्ट होगी, तो नकारात्मक ऊर्जा का ह्रास होगा। लोग आपसे मिलना, आपसे जुड़ना चाहेंगे। घर में, समाज में, दुनिया में परस्पर सौहार्द विकसित होगा। जीवन के संत्रास काफी हद तक दूर हो जायेंगे।
- राजेन्द्र चौधरी
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