आज का यह लेख किसी विषय विशेष पर लिखा हुआ कोई लेख नहीं है। यह मेरे अपने विचारों का एक संकलन मात्र है। अपने मन के विचारों को, ईमानदारी के साथ बिना किसी निर्धारित क्रम के, बस लिख दिया है । इन विचारों की ड़ोर का सिरा कहीं आपके विचारों से भी जा मिला हो, तो अपने अशीष से नवाज़ दीजिये मुझे!
मैं जान चुका हूँ कि हो सकता है आपकी हैसियत के लिए आपके हालात जिम्मेदार रहे हों, लेकिन आपकी शख्सियत के लिए आप खुद जिम्मेदार हैं।
मैं जान चुका हूँ कि कभी-कभी ज़िन्दगी में कुछ ऐसा घटता है जिसके लिए आप जिम्मेदार नहीं होते; उससे लड़ा नहीं जा सकता, उसे स्वीकार करना पड़ता है।
मैं जान चुका हूँ कि कभी-कभी ज़िन्दगी में कुछ लोगों को उनके कामों की वजह से नहीं बल्कि उनके नामों की वजह से इज़्ज़त देनी पड़ती है।
मैं जान चुका हूँ कि सिर्फ इसलिए क्योंकि कोई दो लोग अक्सर आपस में बहस करते रहते हैं, इसका मतलब यह नहीं होता कि वे एक दूसरे को प्यार नहीं करते और क्योंकि उनमें कभी भी आपस में बहस नहीं होती, इसका मतलब यह नहीं हो जाता कि उनमें बहुत प्यार है।
मैं जान चुका हूँ कि हमें अपने दोस्तों को बदलने की ज़रूरत नहीं है अगर हम यह समझ जायें कि वक्त के साथ दोस्त भी बदलते हैं।
मैं जान चुका हूँ कि दो लोगों के द्वारा एक ही चीज को देखे जाने के बावजूद हो सकता है उन्हें जो दिखायी दिया हो वो एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न हो।
मैं जान चुका हूँ कि हमारे बच्चे हमारे सिखाने से उतना नहीं सीखते जितना वे हमें देख कर सीखते हैं।
मैं जान चुका हूँ कि हम अपने बच्चों की हिफ़ाजत करने की चाहे कितनी भी कोशिश करें, वे चोट खायेंगे ही और इस प्रक्रिया में हम भी आहत होंगे ही।
मैं जान चुका हूँ कि चाहे नतीजा कुछ भी निकले, लेकिन जो लोग खुद के प्रति ईमानदार होते हैं, वे ज़िन्दगी में बहुत आगे जाते हैं।
मैं जान चुका हूँ कि चाहे आपके कितने भी प्रियजन और दोस्त हों, लेकिन अगर आप उनके आधार स्तम्भ हैं तो ज़िन्दगी में जब कभी आपको उनकी सबसे अधिक ज़रूरत होगी, आप खुद को अकेला पायेंगे।
मैं जान चुका हूँ कि हमारी ज़िन्दगी को कोई ऐसा व्यक्ति कुछ ही घंटों में बदल सकता है जिसे हम ठीक से जानते भी नहीं।
मैं जान चुका हूँ कि उन हालात में भी जब भले ही हम ऐसा सोचते हों कि अब हमारे पास किसी को कुछ देने की सामर्थ्य नहीं है, अगर हमारा कोई प्रिय व्यक्ति तकलीफ में हमसे मदद की गुहार करता है तो हममें उसकी मदद करने की ताकत आ ही जाती है।
मैं जान चुका हूँ कि ईमानदारी के साथ लिखने और बोलने से भावात्मक पीड़ायें कम हो सकती हैं।
मैं जान चुका हूँ कि जिस परिदृश्य में हम रहते हैं, वो परिदृश्य ईश्वर ने हमें नहीं दिया था, हमने खुद उसे निर्मित किया है।
मैं जान चुका हूँ कि किसी भी व्यक्ति की दीवार पर टंगे हुए प्रमाण-पत्र इस बात का प्रमाण नहीं होते कि वो एक अच्छा इंसान है।
मैं जान चुका हूँ कि चाहे कोई लाख इंकार करे लेकिन हर व्यक्ति चाहता है कि कोई उससे प्यार करे, उसकी प्रशंसा करे।
मैं जान चुका हूँ कि “प्यार” शब्द के बहुत से अलग-अलग अर्थ हो सकते हैं, लेकिन ज़रूरत से ज्यादा इस्तेमाल किये जाने पर वह अपना मूल्य खो देता है।
मैं जान चुका हूँ कि कभी-कभी अच्छा होने और लोगों की भावनाओं को आहत नहीं करने के बीच अंतर-रेखा खींच पाना मुश्किल होता है, और उससे भी मुश्किल होता है उन जीवन मूल्यों के समर्थन में खड़ा रहना जिनमें आप विश्वास रखते हैं।
मैं जान चुका हूँ कि सच्चाईयों की अनदेखी करने से सच्चाईयां नहीं बदलतीं।
मैं जान चुका हूँ कि कभी-कभी जब आप किसी व्यक्ति से अपने सम्बन्ध सुधारने की कोशिश करते हैं, तो आप अनचाहे ही उसे आपको आहत करते रहने का अधिकार दे देते हैं।
मैं जान चुका हूँ कि सही होने के मुकाबले, सुहृदय और क्षमाशील होना कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
मैं जान चुका हूँ कि हर कोई पहाड़ की चोटी पर रहना चाहता है, लेकिन सारी खुशी और सारा विकास तो पहाड़ पर चढ़ने में ही है।
मैं जान चुका हूँ कि दृढ़ होने के लिए ताकत चाहिये, लेकिन सज्जन होने के लिए हौसला चाहिये।
मैं जान चुका हूँ कि जीतने के लिए ताकत चाहिये, लेकिन समर्पण के लिए हौसला चाहिये।
मैं जान चुका हूँ कि जीवित बचे रहने के लिए ताकत चाहिये, लेकिन जिन्दा रहने के लिए हौसला चाहिये।
मैं जान चुका हूँ कि कुछ ऋण ऐसे हैं जिन्हें मैं लाख कोशिश करूँ तो भी इस जीवन में चुकता नहीं कर सकता।
मैं जान चुका हूँ कि काश मैंने अपने माता-पिता के गुजरने से पहले उनसे एक बार और कहा होता कि मैं उन्हें बहुत प्यार करता हूँ।
मैं जान चुका हूँ कि अभी बहुत कुछ है जो मुझे जानना है, सीखना है और बहुत कुछ है जो मुझे भूलना है।
- राजेन्द्र चौधरी
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