हिन्दी मेरी मातृभाषा है। मैं हिन्दी भाषा से बहुत प्यार करता हूँ क्योंकि मेरे मन में विचार मूलत: हिन्दी भाषा में जन्मते हैं। स्वाभाविक है कि अपने विचारों को हिन्दी में अभिव्यक्त करना मुझे अधिक सहज लगता है, उन्हें स्वाभाविक प्रवाह मिल जाता है। लेकिन मैं क्योंकि अनुवाद के पेशे में हूँ, इसलिए हिन्दी के साथ-साथ अंग्रेज़ी भाषा पर भी समान रूप से पकड़ होना मेरे पेशे की अनिवार्यता है। मैं अक्सर कहता हूँ कि हिन्दी मेरे दिल की भाषा है, अंग्रेज़ी दिमाग की। किसी व्यक्ति से अगर आप उस भाषा में बात करें जिसे वह समझता हो, तो आपकी बात उसके दिमाग तक पहुँचती है; लेकिन अगर आप उससे उसकी भाषा में बात करें तो आपकी बात उसके दिल तक पहुँचती है।
भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है। इसलिए बिना किसी पूर्वाग्रह के हमें अधिक से अधिक भाषायें सीखनी चाहियें क्योंकि हमें जितनी अधिक भाषायें आयेंगी, उतना ही हम अपने विचारों को समृद्ध कर पायेंगे, उतना ही अधिक हम लोगों को समझ पायेंगे, उतना ही अधिक हम उनसे जुड़ पायेंगे। हर भाषा की अपनी खूबी और अपनी सीमायें होती हैं। मसलन हिन्दी में हम अपने से बड़े के लिए व औपचारिक सम्बोधन के लिए “आप”, हम-उम्र के लिए “तुम” और छोटे के लिए प्यार से “तू” शब्द का प्रयोग करते हैं। बिना उम्र या रिश्ते के उल्लेख के ही आप इस बारे में समझ सकते हैं। अंग्रेज़ी भाषा में यह सुविधा उपलब्ध नहीं है। वहाँ पर हर एक के लिए “You” शब्द का ही प्रयोग होता है। इसी तरह दूसरे की भावनाओं को महसूस कर लेना, अपने मन में दूसरे की भावनाओं की अनुभूति कर लेने के लिए मुझे आज तक हिन्दी में कोई उपयुक्त शब्द नहीं मिला। हम सहानुभूति, संवेदनशीलता आदि शब्दों से काम चलाते हैं लेकिन ये शब्द कामचलाऊ हैं। अंग्रेज़ी भाषा में इसके लिए बहुत सुन्दर शब्द है “Empathy”। सहानुभूति यानि हमदर्दी के लिए अंग्रेज़ी में शब्द है “Sympathy”, संवेदनशीलता कहलाती है “Sensitivity”। मैंने “Empathy” शब्द सबसे पहले मशहूर लेखक और मैनेजमेंट गुरु स्टीफन आर. कॉवि की अंग्रेज़ी भाषा में लिखी प्रसिद्ध पुस्तक “Seven Habits of Highly Effective People” में पढ़ा था। मैं उस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद कर रहा था। तब बहुत सोच-विचार कर मैंने इसके लिए हिन्दी में शब्द चुना था “परानुभूति”।
किसी भी रचनात्मक व्यक्ति के लिए परानुभूति एक बुनियादी आवश्यकता है। यह परानुभूति ही है जो किसी कवि, शायर, लेखक, चित्रकार, शिल्पकार, गायक की कृति को सजीव बना देती है। अदृश्य को मन की आँख से देख लेना और महसूस कर लेना परानुभूति है। परानुभूति, सहानुभूति और प्रेम दोनों से ऊपर होती है। सहानुभूति और प्रेम में अनुग्रह होता है, एक गहरी कृतज्ञता होती है। सहानुभूति और प्रेम दोनों के सम्बन्ध में ही कुछ लेन-देन का भाव छुपा होता है। परानुभूति स्वत: स्फूर्त होती है। आप स्वत: दूसरे की स्थिति और उसके अव्यक्त भावों की अनुभूति कर लेते हैं। आप इसके बदले किसी से कोई लेने की अपेक्षा नहीं रखते, आप केवल बांटते हैं। प्रेम में यदि आप कुछ देते हैं तो गहरे में कहीं अपेक्षा रहती है कि इसका फल मिले। और यदि फल नहीं मिलता तो आपको शिकायत रहती है। आप चाहे ऐसा न भी कहें लेकिन हजारों ढंगों से यह परिणाम निकाला जा सकता है कि आप असंतुष्ट हैं, कि आपको लगता है धोखा दिया गया है। प्रेम एक प्रकार का सूक्ष्म सौदा है। परानुभूति में ऐसा नहीं होता। कोई आपसे नहीं कहता, कोई आपसे अपेक्षा नहीं रखता कि आप उसके अंतस के भावों को अनुभव करें। अपेक्षा नहीं है तो कोई शिकायत भी नहीं होती। आप दूसरे के भावों को खुद में समो कर खुद बरस जाते हैं जैसे बादल बरसता है। भावों से भर जाने पर आप लेखन, कविता, शायरी, चित्रों आदि के माध्यम से भाव बरसायेंगे ही जैसे पानी से भरे बादल को बरसना ही है। और अगली बार जब बादल बरस रहा हो तो चुपचाप देखना कि जब बादल बरस चुका है और धरती ने उसे अपने में समा लिया है, आपको हमेशा लगेगा मानो बादल धरती से कह रहा हो - तुम्हारा धन्यवाद। तुमने मुझको बोझ मुक्त होने में मेरी सहायता की है। यानि प्यासी धरती को पानी पिला कर भी बादल धरती के प्रति ही आभार व्यक्त करता है। यही बात हर रचनात्मक विधा के व्यक्ति पर लागू होती है।
जो व्यक्ति सही अर्थों में कवि, शायर, लेखक, चित्रकार, शिल्पकार, गायक आदि यानि रचनात्मक विधा से सम्पन्न व्यक्ति हैं वे परानुभूति से ओतप्रोत होते हैं। वे लेने में नहीं बांटने में विश्वास रखते हैं। फ़कीर होते हुए भी इसीलिए तो इतने खुद्दार होते हैं ये लोग। जीवन में अत्यधिक पीड़ा तब होती है जब आप अभिव्यक्त नहीं कर सकते, प्रकट नहीं कर सकते, बांट नहीं सकते। सर्वाधिक गरीब व्यक्ति वह है जिसके पास बांटने को कुछ नहीं है, या जिसके पास बांटने को तो है पर उसने बांटने की क्षमता खो दी है, यह कला खो दी है कि कैसे बांटा जाए; तब व्यक्ति गरीब होता है।
परानुभूति सम्पन्न व्यक्ति की कोई परिधि नहीं होती, कोई सीमा नहीं होती। वह बस देता है और अपने रास्ते चला जाता है। वह आपके धन्यवाद की भी प्रतीक्षा नहीं करता। वह बस प्रेम से अपनी उर्जा को बांटता जाता है। आशीर्वाद दीजिये कि मैं भी आपकी अनुभूति से प्राप्त ऊर्जा को यूँ ही चुपचाप बांटता हुआ गुजर जाऊँ।
- राजेन्द्र चौधरी
Kya khub likha h.
जवाब देंहटाएंMja aa gya
बहुत उत्तम विचार हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत उत्तम विचार है। में इन विचारों से बहुत प्रभावित हुआ। मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि आप का धन्यवाद कैसे करु।🙏
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