रोज की तरह सुबह उठ कर घर के बाहर वाले गेट का ताला खोल कर जब मैं मुड़ा तो अखबार दिखायी नहीं दिया। सोचा रोज तो इस वक्त तक आ जाता था, फिर आज तो बारिश भी नहीं हो रही है, अब तक तो आ जाना चाहिये था। झुक कर पॉर्च में खड़ी हुई कार के नीचे झांका, वहाँ भी नहीं था। श्रीमती जी ने मुझे अवनत अवस्था में देख कर सवाल दागा, “क्या देख रहे हो, कुछ पड़ा है क्या वहाँ पर”? मैंने विनम्रता के साथ उत्तर दिया कि कुछ नहीं, अखबार देख रहा था, कहीं वहाँ पर फेंक दिया हो हॉकर ने। आया नहीं आज? श्रीमती जी को कुछ मामलों में सामान्य ज्ञान प्रचुर मात्रा में प्राप्त है। बोलीं कि आज शिवरात्रि है, गया होगा वह भी कल काँवड़ लेने। मैं बोला, “अच्छा, आज शिवरात्रि है, चलो शुक्र है”। पत्नी की तरफ से सवाल आना यकीनी था, बोलीं “आज शिवरात्रि है, इसमें शुक्र की क्या बात है”? मैंने दबे स्वर में कहा कुछ नहीं, शायद आज से बिजली ठीक तरह आयेगी। पिछले पूरे हफ्ते विद्युत कर्मियों ने बिजली की कटौती के बाबत अपने विवेकाधीन अधिकारों का भरपूर उपयोग किया। हालाँकि किसी नेता जी का बयान आया था कि आगामी शिवरात्रि को देखते हुए कोई लोडशेडिंग नहीं होगी। लेकिन हमारे यहाँ नेतागण और मौसम वैज्ञानिक जो कहें, बेहतर है कि आप उसके विपरीत स्थिति की अपेक्षा रखें। ज्यादा सम्भावना उनके बयानों के उलट स्थिति की रहती है। एक हफ्ते से बाज़ार सुनसान हैं, सड़कें बंद हैं, ट्रैफिक डाइवर्ट कर दिया गया है, स्कूल बंद हैं, बीमारों को देहली वगैरा किसी दूसरे शहर के अस्पतालों तक ले जाना दुरूह कार्य है, जिन लोगों के घरों में कोई छोटे मोटे समारोह हैं वे फोन करके रिश्तेदारों को न आने की सलाह दे रहे हैं, सब्जी व फलों के दाम दोगुने हो गये हैं और कहा जा रहा है कि काँवड़ की वजह से रास्ते बंद हैं इसलिए माल की आवक नहीं हो पा रही है। गोया काँवड़ न हुई कोई तूफान हो गया, कर्फ्यू जैसे हालात बना दिये। हाँ रास्तों पर जगह जगह गेरुए कपड़े पहने हुए काँवड़धारी भोले शंकर के तथाकथित भक्तों के दस्तों की आवाजाही भरपूर है। जगह-जगह सड़कों पर शामियाने लगे हुए हैं, बिजली के खम्भों पर अवैध रूप से तार ड़ाल कर लाउडस्पीकरों पर शिव के भजन बज रहे हैं, चाय, शर्बत, नाश्तों के आयोजन चल रहे हैं। इस दौरान अमूमन रोज ही अखबारों में पढ़ने को मिल जाता है कि फलाँ जगह काँवड़ियों ने रोड़वेज की बस के शीशे तोड़ दिये क्योंकि बस किसी काँवड़ से टकरा गयी थी। महिला सशक्तिकरण के इस दौर में अब तो महिलायें भी काँवड़ लाने के इस पुण्य कार्य में बढ- चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं। विश्वस्त सूत्रों से पता चला कि एहतियात बरतते हुए और सम्भावी दुरुपयोग को रोकने के लिए विद्युत कर्मियों ने बिजली की सप्लाई में कंजूसी बरतना ही उचित समझा। वाह रे मेरे भारत लोकतंत्र! हाँ एक बात कुछ ज़रूर अच्छी होती है इस काँवड़ महोत्सव के समय और उधर रमज़ान के समय भी, चोरी- चकारी जैसे अपराध कुछ कम हो जाते हैं, अब व्यक्ति एक ही समय पर दो जगह तो नहीं हो सकता ना।
मैं सोचता हूँ सामान्य जीवन की गतिविधियों के पहिये को थाम कर हरिद्वार से लाकर कितना पानी, सॉरी जल चढ़ायेंगे शिव पर? क्या वह जल सारे पाप धो देगा? क्या काँवड़ लाने से सारी मन्नतें पूरी हो जायेंगी? हजार गुनाह करो और बस काँवड़ ले आओ, शिव जी खुश! बाह रे मेरे भोले डमरू वाले बाबा शिव जी, तुसी ग्रेट हों। धर्म के नाम पर क्या व्यावसायिक आयोजन किया है तुम्हारी पी. आर. एजेंसी ने! और वाह रे हिन्दुस्तानी आदमी! शॉर्ट कट निकालने में तेरा कोई सानी नहीं।
आदमी गरीब मंदिर रईस! देश बेहाल और मन्दिरों में अरबों का खजाना! सोचता हूँ परिवार तर जायें, अगर घर में एक आदमी नेता, एक नौकरशाह और एक धार्मिक गुरू बन जाये। कौन समझायेगा और कौन समझेगा कि ईश्वर बाहर नहीं, स्वयं में स्थित है और आज नितांत उपेक्षित है। आत्मा उपेक्षित है तो परमात्मा भी उपेक्षित ही होगा। सब एक ही रंग में रंगे हुए हैं। अच्छे बुरे का फर्क मिटता जा रहा है।
- राजेन्द्र चौधरी
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