आज के इस दौर में मैं देखता हूँ कि खास तौर से युवा लोग सब कुछ एक साथ, और जल्दी से पा लेने की इच्छा रखते हैं। उन्हें काम के लिए दिन में चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं। इस प्रक्रिया में न चाहते हुए भी उनका स्वास्थ्य और परिवार उपेक्षित होने लगता है, तो मुझे यह बोध कथा अक्सर याद आती है। इस कथा को मैंने पहली बार अपने पारिवारिक चिकित्सक की क्लिनिक पर लगे अंग्रेज़ी के एक पोस्टर के रूप में पढ़ा था। पढ़ते ही मुझे यह इतनी भायी कि कंठस्थ हो गयी। इसलिए मैंने सोचा कि इसे हिन्दी में आपके साथ बांटना उचित रहेगा। शायद समय रहते यह आपको अपने जीवन की प्राथमिकतायें निर्धारित करना सिखा सके। सम्भव है कि आपने इसे पहले कहीं पढ़ा हो, लेकिन मेरा मानना है कि अच्छी बातें दोहरायी भी जा सकती हैं। इसलिए इसे कृपया दोबारा पढ़ें।
“दर्शनशास्त्र के एक प्रोफेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि आज वे जीवन का एक बहुत महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाने वाले हैं। उन्होंने अपने साथ लाया हुआ काँच का एक जार मेज पर रखा तथा वो उसमें टेबिल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें और एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची।
उन्होंने छात्रों से पूछा, “क्या जार पूरा भर गया?” छात्र एक स्वर में बोले, “जी हाँ”। फिर प्रोफेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकर उसमें डालने शुरू किये। उन्होंने जार को धीरे-धीरे हिलाया तो जहाँ जहाँ जगह थी उसमें वे कंकर समा गये।
फिर उन्होंने पूछा, “अब जार भर गया?” छात्रों ने एक बार फिर “हाँ” कहा। उसके बात उन्होंने अपने साथ लायी एक थैली खोली और उसमें से रेत निकाल कर उस जार में डालना शुरू कर दिया। वो रेत भी उस जार में जहाँ सम्भव था, वहाँ बैठ गया। अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे।
प्रोफेसर साहब ने पूछा, “क्यों, अब तो यह जार पूरा भर गया, ना?” सभी छात्र बोले, “हाँ, अब तो पूरा भर गया”। तो उन्होंने मेज के नीचे से चाय भरे हुए दो कप निकाले और उनकी चाय जार में उँडेलना शुरू कर दी। चाय भी जार में पड़ी रेत के द्वारा सोख ली गयी।
प्रोफेसर बोले कि हाँ, अब यह जार पूरा भर गया है। अब इसमें कुछ भी और नहीं आ सकता है। इसके बाद उन्होंने गम्भीर लहज़े में समझाना शुरू किया – “इस काँच के जार को तुम लोग अपना जीवन समझो.... टेबिल टेनिस की गेंदें जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीजें जैसे ईश्वर, परिवार, बच्चे, स्वास्थ्य, व तुम्हारे शौक आदि हैं.... छोटे कंकर तुम्हारा कैरियर, नौकरी, बड़ा मकान, कार आदि तुम्हारी महत्वाकांक्षायें हैं.... रेत का मतलब है छोटी-छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, स्पर्धा, आपसी झगड़े आदि।
.... अब यदि तुमने जार में सबसे पहले रेत भरा होता, तो टेबिल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिए जगह नहीं बचती, या कंकर भर दिये होते तो गेंदे नहीं भर पाते.... रेत ज़रूर आ सकती थी। ठीक यही बात जीवन पर भी लागू होती है। यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पड़े रहोगे, उसमें अपनी ऊर्जा नष्ट करते रहोगे, तो तुम्हारे पास महत्वपूर्ण चीजों के लिए न तो समय रहेगा और न ऊर्जा बचेगी।
तुम्हारे जीवन और तुम्हारे आत्म-सुख के लिए क्या ज़रूरी है, यह तुम्हें ही तय करना है। टेबिल टेनिस की गेंदों की फिक्र पहले करो, वे ही महत्वपूर्ण हैं। पहले उस पर ध्यान रखो जो मुख्य है, महत्वपूर्ण है, ज़रूरी है। बाकी सब तो रेत है”।
छात्र बड़े ध्यान से सुन रहे थे.... अचानक एक ने पूछा, “सर! लेकिन आपने यह नहीं बताया कि चाय के दो कप क्या हैं?” प्रोफेसर मुस्कुराये और बोले, “मैं सोच ही रहा था कि अभी तक किसी ने यह सवाल क्यों नहीं किया? इसका जवाब यह है.... जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट क्यों न लगे, लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह उसमें हमेशा होनी चाहिये”।
हमारे जीवन में अच्छा-बुरा जो भी होता है, वो अनापेक्षित दुर्घटनाओं को छोड़ दें, तो अधिकांशतया हमारे द्वारा निर्धारित की गयी प्राथमिकताओं और उपेक्षित दायित्वों का ही परिणाम होता है। अप्रत्याशित घटनाओं के अलावा अपनी शेष नियति हम खुद निर्धारित करते हैं। हमारी साँसें और ऊर्जा निश्चित हैं - उन्हें कैसे खर्च करना है, यह खुद हम पर निर्भर करता है।
- राजेन्द्र चौधरी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें