शुक्रवार, अप्रैल 13, 2012

कभी-कभी

एक अंतराल के बाद आज फिर आप लोगों से मुखातिब हूँ। कभी-कभी व्यस्ताओं में हम स्वयं की ही सबसे ज्यादा अनदेखी करते हैं। ज़िन्दगी भी अजीब है:

कभी-कभी हमें यह सोचने के लिए मजबूर कर देती है कि ऐसा क्यूँ हुआ, कैसे हुआ, और कभी-कभी क्या हुआ, क्यों हुआ, कैसे हुआ, अब क्या होगा, कैसे होगा, न सोच कर यह सोचने के लिए मजबूर कर देती है कि जो हुआ...हुआ...जो होना है...होगा।

कभी-कभी लोग महसूस कुछ करते हैं, कहते कुछ और हैं, और उनका मतलब कुछ और होता है; और कभी-कभी लोग बिना कहे ही सब कुछ कह देते हैं।

कभी-कभी एक तस्वीर हज़ारों शब्द बोल जाती है; और कभी-कभी एक शब्द दिमाग में हज़ारों तस्वीरें उभार देता है।

कभी-कभी हम उन्हीं लोगों से दूर होना चाहते हैं जिन्हें हम प्यार करते हैं, इसलिए नहीं कि वे हमारी अहमियत जान सकें बल्कि इसलिए कि हम अपनी अहमियत जान सकें।

कभी-कभी हम औरों को प्राथमिकतायें निर्धारित करना सिखाते हैं; और कभी-कभी अपनी प्राथमिकतायें सीधी रखने के लिए हमें अपने ही बनाये हुए नियमों को झुकाना पड़ता है।

कभी-कभी उन चीजों को भूल जाना आसान होता है जिन्हें हम याद रखना चाहते हैं, और जिन चीजों को हम भूलना नहीं चाहते उन्हें कभी-कभी याद रख पाना मुश्किल हो जाता है।

कभी-कभी हँसी दिल का दर्द भुला देती है; और कभी-कभी किसी की हँसी ही दिल तोड़ देती है।

कभी-कभी दुनिया की रफ्तार अपनी रफ्तार के मुकाबले बहुत तेज़ लगती है; और कभी-कभी तेज़ चल रही दुनिया भी धीमी महसूस होती है।

कभी-कभी ज़िन्दगी एक सपना लगती है; और कभी-कभी सपने भी सपने जैसे नहीं लगते।

कभी-कभी दिमाग़ में सिर्फ घर जाने की सूझती है; और कभी-कभी ज़िन्दगी में घर ही हाथ नहीं आता।

कभी-कभी मन करता है कि कुछ देर के लिए अकेले हो जायें; और कभी-कभी कुछ देर का अकेलापन ही झेलना मुश्किल हो जाता है।

कभी-कभी मुस्कान के मुकाबले आँसू खास हो जाते हैं क्योंकि मुस्कान किसी को भी दी जा सकती है, आँसू उन लोगों के लिए होते हैं जिन्हें हम खोना नहीं चाहते; और कभी-कभी ज़िन्दगी एक मुस्कान को तरस जाती है।

कभी-कभी लगता है बरसों बरस से सब कुछ वैसा ही है, कुछ नहीं बदला; और कभी-कभी पीछे मुड़ कर देखने पर लगता है सब कुछ बदल गया, कुछ भी पहले जैसा नहीं रहा।

कभी-कभी किसी से बहुत कुछ कहने को मन करता है; और कभी-कभी वह व्यक्ति जब मिलता है तो शब्द खो जाते हैं, कुछ कहने को नहीं रहता।

ज़िन्दगी वैसे तो “हेलो” और “गुडवाई” के बीच का ही अंतराल है, लेकिन कभी-कभी “गुडबाई” कह कर जाने वाला वापस “हेलो” कहने के लिए नहीं आ पाता। इसलिए बेहतर यही है कि हम “हेलो” और “गुडवाई” के बीच के क्षणों को जी भर कर जी लें।
- राजेन्द्र चौधरी

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